पत्रकारिता धर्म और गणेश शंकर विद्यार्थी

''मैं अपने नाम के आगे विद्यार्थी इसलिए जोड़ता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि मनुष्य ज़िंदगी भर सीखता रहता है, हम विद्यार्थी बने रहते हैं '' - इस प्रकार के महान आदर्शों को सामने रखकर गणेश शंकर विद्यार्थी जी पत्रकारिता को एक साधन के रूप मे ही स्वीकार करते हैं । पत्रकारिता उनके जीवन का ध्येय अथवा उद्देश्य न थी । उसके सहारे से वह एक महान कार्य करना चाहते थे । समाज के प्रति पत्रकार के दायित्व को वे भली प्रकार समझते थे । व्यापक विचारों के समर्थन में अपना मत व्यक्त करने वाले गणेश जी का मानना था कि निष्पक्ष भाव से समाचार देना पत्रकार के लिए आवश्यक है । विद्यार्थी जी के अनुसार पत्रकार समाज का सृष्टा है , सत्य का उपासक है सर्वहित चिंतनकारी है । केवल समाचार देना, पैसा कमाना है ;और इस तक आज पैसा कमाना पाप है । विद्यार्थी जी की इन मान्यताओं के कारण प्रताप का बहुत आदर हुआ उसे जनसाधारण का पूरा पूरा सहयोग और विश्वास मिला । उनका मानना था कि जिस प्रकार एक छापने वाली मशीन केवल वही छाप सकती है जैसा कि कम्पोजीटर ने कंपोज किया है कि ठीक उसी प्रकार सत्य - असत्य , धर्म और अधर्म का ...