आज़ादी!!!

#समीक्षित ❤️ पच्चीस बरसों में पहली बार पन्द्रह अगस्त वाले दिन सफर किया. . . घर से कानपुर आया। रास्ते में बीसियों रैलियाँ मिली, तिरंगा लहराते सैकड़ों लोग दिखे। छतों पर हवा से बतकही में लगे हजारों ध्वजों को देखकर मन बारम्बार रोमांचित होता रहा। घर से निकलने की जल्दी में पानी की बोतल रखना भूल गया। रास्ते में पानी साथ न होना कई बार परेशानी का सबब बन जाता है क्योंकि प्यास लगने पर मन पैक्ड वॉटर लेने और नहीं लेने के द्वंद्व में पड़ जाता है। बीस रुपये की बोतल लेना कई बार फिजूल लगता है। अब अक्सर मैं पानी के बजाय छाछ, लस्सी या दूध ले लेता हूँ। पहले कोल्ड ड्रिंक ले लिया करता था पर इधर कुछ दिनों से उसको भी कम किया है। कानपुर तक आते-आते रास्ते में कई जगह बारिश मिली। रुई के फाहों से बादल हवा के साथ-साथ गिरते-पड़ते-उड़ते भागे जा रहे थे जैसे बूँदी बंटने के बाद प्राइमरी स्कूलों के बच्चे भागते हैं। ये छुट्टी होते ही घर की ओर भागने का सुख भी केवल प्राइमरी और उसके जैसे सीमित पहुंच वाले स्कूल के बच्चों को ही नसीब है वरना बढ़ते कॉन्वेंटीकरण में बच्चे या तो स्कूल बस में सवार हो जाते है या फिर खड़े ...