आठवी जी के लड़के
ये बच्चे जिन जगहों से आते हैं वहाँ बहुतों की ज़िंदगी 10 ×10 के कमरे में बीत जाती है, वहाँ लोगों को नहीं पता कि सिविक सेंस किस चिड़िया का नाम है, सरकारें जिन जगहों को अपने वोटबैंक के तौर पर यूज़ करती है और फिर भूल जाती हैं। इन जगहों से निकलने वाले इन बच्चों से रफ़्तार- गुफ़्तार- नशिश्त- बरख़ास्त की उम्मीद लगाना बेमानी है, अदबी रवैये की तवक़्क़ो बेकार है। इनमें से एक घर पहुंच कर सीधा दादा की दुकान पर जाएगा, और दूसरा ब्रा सिलने के लिए मशीन पर बैठ जाएगा। तीसरा जेल में बंद अपने वालिद से मिलाई पर जाएगा और चौथा घर का सिलेंडर भरवाने। पाँचवा सिले हुए कुर्ते सिर पर उठा दुकान मे देने जाएगा और छठवा साइकिल पे कुछ सामान लटका कर फेरी लगाएगा। नैतिकता-सभ्यता-सामाजिकता जैसे शब्दों को बारहाँ कुचलते हुए ये अपने और अपने परिवार के लिए कमाते ये लड़के पूरे मुस्तफ़ाबाद में घूमते है और इस पूरे इलाके को अपनी जागीर समझते हैं। इन लड़को को भूगोल दिल्ली का भी नहीं पता पर भौकाल इतना जैसे कि कनाडा को जेब में लेकर घूम रहे हो। अव्यवस्थित व्यवस्थाओं की मार के सताए हुए क्षेत्र के ये असंतुलित बच्चे किसी का सर ...