नज़्म ❤🌷🌷

मुझे फ़िर से नया कोई बहाना सोचना होगा .. मेरी अम्मी के हाथों में कुछ एक फोटो नए फिर हैं । उन्हें कैसे बताऊं ? एक लड़की है निराली सी के तस्वीरें हजारों जिसकी मेरे फोन में ही है । मुझे नफरत है खाला से ;जो हर इतवार की सुब्ह चली आती है घर मेरे ,लिए बच्चों को संग अपने उन्हीं के पर्स में रखी हुई होती है तस्वीरें ; जो दोपहर तक पहुंचती है मेरी अम्मी के हाथों में। लिये तस्वीर हाथों में बड़ी बेचैन होती हैं अरी शबनम!बता क्या नाम है इसका?कहां की है ? लबों पर खेलती इसके तबस्सुम .. भा गई मुझको अलग रख ले ये फोटो शाम को उसको दिखाऊंगी । अरे तौबा ! ये वाली लाख बेहतर पहले वाली से अदब नज़रों में ही इसकी नज़र आती है न शबनम औ' ये रुखसार की सुर्खी तो जैसे सेब कश्मीरी । हर एक तस्वीर पहले से कुछ बेहतर ही होती है हर एक तस्वीर के संग मुश्किलें बढ़ती हैं अम्मी की । मैं हैरत में पड़ा यह सोचने लगता हूं कि अक्सर ये अम्मी ही तो कहती है...