रम्या

(1) मैं उसकी आंखों के भीतर देखने की कोशिश कर रहा था । मेरी कोशिश थी कि उसकी आंखों में झांक कर उस लड़की को देखूं जिसने 5 बरस पहले इजहार- ए- इश्क किया था मुझसे । रम्या जब एम ए में एडमिशन लेकर कॉलेज में दाखिल हुई थी तब वह काफी अच्छी कविताएं लिखने लगी थी । हिंदी पढ़ने वाली अब तक कितनी लड़कियों से मैं मिला था , रम्या उन सब से अलग थी । उसे हिंदी इसलिए नहीं पढ़नी थी क्योंकि हिंदी पढ़ी जा सकती थी बल्कि उसे हिंदी इसलिए पढ़नी थी क्योंकि वो हिंदी ही पढ़ना चाहती थी । मुझे नहीं पता चला कि हिंदी पढ़ते-पढ़ते वह कब पढ़ने लगी मेरी कविताएं। मेरे कई गीत उसकी खामोशियों की आवाज बने ऐसा बताया था उसने जब इजहार किया था अपने इश्क का । वह समझती थी मुझको बेहद रोमांटिक बिल्कुल मेरी कविताओं की तरह । उसे नहीं पता था कि ये कविताएं विरोधाभास हैं मेरे जीवन का ; जो सुख सौंदर्य लालसा उत्कंठा पूरी क...