ग़ज़ल
मेरी मोहब्बत तेरी अदावत को जीत लेगी ये ज़िंदगी देखना क़यामत को जीत लेगी ये जिसको तुम कुछ भी ना समझते हो, ख़ैर खाओ ! ये भीड़ इक दिन तेरी सियासत को जीत लेगी नसीब वालों ! उठाओ परचम , कदम बढ़ाओ तुम्हारी कोशिश दिलों की चाहत को जीत लेगी सवाल उठता, सवाल उठने की बात ही है भला शराफ़त भी कैसे जुल्मत को जीत लेगी हमीं तुम्हारे क़रीब आकर ठहर गए हैं नहीं पता था, तू मेरी वहशत को जीत लेगी