#माधव_और_संवेदना
#समीक्षित
#माधव_की_डायरी
कुछ लिखने के लिये राइटिंग पैड उठाया जाता है पर लिखा कुछ नहीं जाता। जब आपको भयंकर जुकाम हो _खाँसी हो ... और चारो तरफ सिर्फ #कोरोना की चर्चा ...तब दिमाग़ केवल उसके लक्षणों को खुद में ढूंढता है , और कुछ नहीं । अचानक से जिंदगी छोटी और झूठी लगने लगती है । मौत के बारे में सोच - सोच कर दम तो वैसे ही निकल चुका होता है।
हालांकि ऐसे में भी मैं प्रेम कहानी लिख सकता हूं। पर फिर रुक जाता हूं कि क्या फायदा । क्या कहानी पूरी कर पाऊंगा ? क्या वास्तव में इतने दिन है मेरे पास ? .... या फिर क्या इतने दिन है किसी के भी पास कि वो अपनी कहानी पूरी कर सके ? क्योंकि, कहानी लिखी तो धीरे-धीरे जाती है पर हमारे सामने वो मुकम्मल किसी एक दिन अचानक ही हो जाती है। फोन में मैसेज आता है- '' इट्स ओवर नाउ।'' सुबह जिस नंबर पर आप पूरे दिन का शेड्यूल सुना चुके होते हैं शाम से लगातार वह नंबर ''नॉट एक्जिज्ट'' हो जाता है। ....और सब कुछ पूरा हो जाता है काफी कुछ अधूरा छोड़ कर। कहानियां ऐसे ही पूरी होती है #मेरे_दोस्त ! जिंदगी हर एक को कबीर सिंह बनने का मौका नहीं देती । हम में से अधिकतर को कुंदन बनना पड़ता है ...मर जाना पड़ता है। इसलिए नहीं कि मरना ही था बल्कि इसलिए क्योंकि जीना नहीं था ... उठना ही नहीं था।
2 दिन बाद होली है पर अभी से हैशटैग #होली ट्रेंड करने लगा है... पर मैं होली नहीं खेलूंगा। मुझे रंग बेहद पसंद है इसके बावजूद भी नहीं। क्योंकि रंग उसको भी पसंद थे , उसे जो बदरंग कर गई है मेरी ज़िंदगी । गुलाल और रंगों से भरी हथेलियां, जो सवेरे ही मेरे गालों को रंग जाती थी ; वो खो गई है। पर यादें ... यादों का क्या किया जाए... वो तो कहीं नहीं गई_ यहीं है। ... और #गुलाल को देखने के बाद मेरा मन होने लगता है उन हथेलियों को देखने का । भले ही मैं अब उसे नॉर्मली मिस नहीं करता लेकिन भूला नहीं हूं उसे रत्ती भर भी ।
बस इसीलिए मैं कोई बात शुरू नहीं करता ... क्योंकि बात खत्म कहां होगी ये मुझे खुद ही पता नहीं होता । बहरहाल आखिर में यही कहूंगा कि कोरोना होना आपके मरने को 1% भी प्रभावित नहीं करता। आप जिंदा रह कर मर सकते हैं और भी बुरी तरह से लगभग हर दिन।
#माधव_और_संवेदना ❤🌷🎶
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