मुक्तक
अधर की सांकलें मन के करों से खोल देती तुम
स्वरों के मधु को इस मादक पवन में घोल देती तुम ,
कि मैं उलझा था उलझन में सो तुमको देख ना पाया
जो देखा था मुझे तुमने__तो कुछ तो बोल देती तुम ।
शिवम् सागर
9557301043
अधर की सांकलें मन के करों से खोल देती तुम
स्वरों के मधु को इस मादक पवन में घोल देती तुम ,
कि मैं उलझा था उलझन में सो तुमको देख ना पाया
जो देखा था मुझे तुमने__तो कुछ तो बोल देती तुम ।
शिवम् सागर
9557301043
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