कबीर अगर आज होते तो...

कबीर आज होते तो क्या होता... ??


बहुत अधिक सम्मान तो उनके समय ने भी उन्हे नहीं दिया पर आज होते तो उनके एक-एक दोहे की ट्रोलिंग की जाती, उनके खिलाफ दर्जनों-सैकड़ों एफआईआर फाइल होतीं। प्रिंट मीडिया उनकी बातों को भड़काऊ बताता और न्यूज चैनल्स उनके सीने पर
टुकड़े-टुकड़े गैंग
का तमगा चिपका देते। धर्म और समाज को बचाने वाले स्वघोषित नेताओं की भीड़ हाय-हाय करती निकलती और चौराहों में उनके पुतले फूंके जाते। 

वो कहते कि - 'पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़' तो कई कथित सनातनी दल उनके घर का घेराव करते, उनको अरब एजेंट डिक्लेयर करते और पाकिस्तान भेजने की घोषणाएँ करते। वो कहते 'जौ तू तुरक तुरकनी जाया। तौ भीतर खतना क्यों न कराया।' तो उनके सर कलम के फतवे जारी हो जाते। वो कहते 'काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम' इतने में हिन्दू-मुस्लिम समवेत स्वर में उन्हे गरियाते। उन तानों-फब्तियों-गालियों से कबीर और चार्ज ही होते 'हिंदू मूये राम कहि, मुसलमान खुदाई/ कहै कबीर सो जीवता , दुई मैं कदे न जाई'। हिन्दू-मुस्लिम सब उनके विरोधी होते, भाजपा-कांग्रेस से लेकर एआईएमआईएम और पीडीपी तक सब उनके खिलाफ प्रदर्शन करते अगर कबीर आज होते। 

पर कबीर तो कबीर ही होते वो कब ऐसी गीदड़ भभकियों से डरते और कहते कि 'हम न मरैं मरिहै संसारा' मरने से वो डरे जिसे संसार की लालसा हो। कबीर को कब कहाँ कोई लालसा होती
उनकी कबीरियत ही उनकी ढाल बनकर उनके सामने होती। वे लोगों को प्रेम के ढाई आखर पढ़ाकर पंडित बनाते और तमाम विश्वविद्यालयों के द्वारा दी गयी तमाम पीएच.डी. और डी.लिट् की डिग्रियों पर घड़ो पानी पड़ जाता। मठों की मठाधीशी खतरे में रहती। 'हिंदू तुरक का साहिब एक' की गुत्थी सुलझाते-सुलझाते पण्डितों और इमामों की उमरें गुजर जातीं। 'मन कर मक्का किबला करि देही' से वो अपने मन की यात्रा को ही हज करना मानते तो अरबी राजदूतों के मन विचलित हो उठते। मन की साबित को मूर्तियाँ पूजने-हज करने से बड़ा बताने के लिए कबीर सा हिम्मती करेजा चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मिल जाने से अभिव्यक्ति की हिम्मत नहीं आ जाती।

कबीर के फंडे बाकी दुनिया से अलग होते, वे जाति-पंथ, ऊंच-नीच के थोथे पैमानों को धता बताते हुए आगे बढ़ते। कोई कुछ कहता तो उसी से पूछते- 'एक बूँद एक मल मूतर एक चाम एक गूदा/ एक जाति थै सब उपजा, कौन ब्राह्मन कौन सूदा' कोई ज्यादा छेड़ता तो मुस्कुराते हुए ये कहते - 'हमारे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध। तुम्ह कैसे ब्राह्मण पांडे हम कैसे सूद।' और निकले चले जाते। कबीर को भय थोड़ी होता, उन्हें लोभ थोड़ी होता। वे न जाने कितनों की ईमामत, न जाने कितनों की पंडिताई छीन लेते, न जाने कितनों की ठेकेदारी बंद हो जाती अगर कबीर आज होते। 

आज जो लोग कबीर के नाम पर पंथ बनाए बैठे है कबीर आज होते तो सबसे पहले उनको उनकी गद्दियों से धकिया देते। कबीर खुद अपना घर फूंकने वालों का आह्वान करते और उनको अपना अनुयायी बनाने की बजाय उनको उनकी वास्तविक दुनिया खोजने को कहते। 

अगर कबीर आज होते तो शायद किसी दिन किसी पुल, किसी तालाब के पास उन्हे भीड़ घेर लेती। उनकी हत्या की जाती जिसे वध जैसा कुछ बताया जाता। किसी सुबह अखबार में निकलता कि 'धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले विवादित कवि की मृत शरीर नाले में मिला।'

- चित्र सद्गुरु कबीर समधि

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