तानसेन के पास होना...

बारिश रुक-रुककर हो रही थी। मौसम सुहाना था। हवाओं में चम्पा और बेला के फूलों की खुश्बू घुली हुई थी और मियाँ तानसेन न जाने किस राग की कौन सी बंदिश के ख़्वाबों में खोये सो रहे थे... उनके चबूतरे का बायाँ हिस्सा चमेली के पेड़ से झर रही फूलों की पत्तियों से भरा हुआ था और दाहिने में इमली का दरख़्त खड़ा था। 

बारिश हो रही थी। मियाँ सो रहे थे। बारिश हुई जा रही थी। वो सोये जा रहे थे। शायद राग मेघ गाकर ही सोये होंगे। 

तन तो वहाँ से उठ आया पर मन का एक हिस्सा अभी भी यही बैठा है। प्रतीक्षा में। कि कभी तो उठेंगे। कभी तो ये नींद टूटेगी। कभी तो तान छिड़ेगी - घन गरजत बरसत बूँद-बूँद। इस जनम न सही तो अगले जनम। कहीं न कहीं तो टकराएंगे ही हम। ज़िंदगी में न सही तो जन्नत में सही।

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