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Showing posts from February, 2020

माधव_और_संवेदना

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#समीक्षित दुनिया भी एक झटके में खत्म हो जाएगी... बिना कोई दूसरा मौका दिए ।  हमने कहा था एक दूसरे से कि ''शाम को फोन करेंगे।'' ... हालांकि यह कोई वादा नहीं था, पर फिर भी एक भरोसे का प्रतीक तो था ही यह कहना कि 'फोन करेंगे'। __ मतलब हमारे बीच अभी कुछ ऐसा है जिस पर बात की जा सकती है... कुछ ऐसा है जो हमारे नंबर्स को एक दूसरे के कॉल लॉग्स में ऊपर उठा सकता है। पर पहल कैसे की जाए? और होता है इंतजार कि सामने वाला करें कोई शुरुआत.... और कोई फोन नहीं आता। फोन का मौन व्रत लगातार जारी रहता है। 😕 माधव ने एक बार मुझसे इस बात का जिक्र किया था कि इन दिनों संवेदना से बात नहीं हो पा रही है ठीक से। आज भी उसने  '' पापा आ गए हैं'' बोल कर फोन रख दिया।__ इस बात को लगभग 5- 6 महीने बीत चुके हैं और लगातार 'पापा आ गए हैं' , 'मम्मी बुला रही है'  का जो नतीजा निकला वह बताने की जरूरत नहीं।   माधव कितना बेचैन है,,, नहीं बता सकता_ पर शायद इतना बेचैन मैं कभी नहीं हुआ था स्नेहा के लिए  क्योंकि मैं और स्नेहा कभी एक रिश्ता  बना ही नहीं पाए। और वो जो रिश्ते  जैसा बना ...

ये दिन खास सा है।

ये दिन ख़ास सा है  मुकम्मल हुई थी खुदा की बनाई  एक बेहद निराली सी  तस्वीर इस दिन । उसी की खुशी है जो मै जी रहा हूँ  उसी की खुशी है जो  मै पी रहा हूँ ...  उसी की वज़ह से मै ये लिख रहा हूं । उसी की वज़ह से है तरतीब मे सब , ये खुर्शीद- तारे बताओ क्यों जगमग चमकते  सुब्हो शाम ? आखिर क्या मसला है इनका ... ? यक़ीनन  महज़ जल रहे है  जो कर ली है रंजिश उसी से, जिसे अपना महबूब कहने की ख्वाहिश दबाये हुए दिल  हमारा... जिये जा रहा है , किये जा रहा है _ वही काम अपना  बताती है जितना उसे बायोलॉजी । तुम्हे उसकी तस्वीर कैसे दिखाऊं , जिसे देख कर कैमरे हों दिवाने  सभी अपने फंक्शन भुला दें । भुला दें _ लगा टाइमर  सेल्फ़ी लेने की कोशिश  करी हमने जब भी मियां नीप्से ! कैमरा ये हमेशा ही भूला कि क्या काम उसका .... ये ब्लर - फ़्लैश - पोट्रेट  ये टाइमर... ये पल पल के मसले ... नहीं उसको आते ज़रा भी ज़रा भी । यकीं मानो हम  देखते है  उसे  अब भी  बंद करके आंखे । खुली आंखो से झेलना ताब उसका  भला किसको मुमकिन। उसका अंदाज़े...

वैलेंटाइन ❤🌷😑

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#समीक्षित 🌷 रिजेक्शन उतना भी बुरा नहीं लगता अगर रीजन पता हो । रुख़सार ने एकदम  साफ़ तरीके से अनिमेष से मना कर दिया था कि ''अब्बा मान ही नहीं सकते । तुम मुस्लिम नहीं हो न । ''  अनिमेष ने पहली बार सच की कड़वाहट को इस तरह महसूस किया । ये दोनो जोया और परम की तरह हिम्मत नहीं दिखा पाए । दिखा भी नहीं सकते । इनकी ज़िंदगी में कोई चाँद बीबी भी नहीं थी जो मददगार साबित होती । मगर इस सबके बावजूद अनिमेष को सुकूं था इस बात का की रुख़सार को उससे मुहब्बत थी (और शायद है भी )।  माधव अब अनिमेष को भी मुहब्बत के मामले में नसीब वाला समझता है कि उसके पास कम से कम इश्क़ के एहसासात तो हैं । संवेदना से दूर होने के बाद से उसको अपने सिवा हर शै खुशनुमा और शख़्स खुशहाल नज़र आता है । एक लम्बे अरसे से उसकी रातें यही  सोचते-सोचते गुज़रती हैं कि क्या वास्तव मे उसके और संवेदना के बीच कोई इतनी ख़ामोशी से आ गया कि उसको पता तक न चला ।  काश संवेदना मे भी रुख़सार जितनी साफ़गोई होती ! काश वो भी माधव को कोई वज़ह दे जाती तो माधव इस कदर परेशान न होता !! 13 तारीख की शाम है ,  फ़रवरी आधी बीत गई है लगभग...