ये दिन खास सा है।

ये दिन ख़ास सा है 
मुकम्मल हुई थी खुदा की बनाई 
एक बेहद निराली सी 
तस्वीर इस दिन ।
उसी की खुशी है जो मै जी रहा हूँ 
उसी की खुशी है जो 
मै पी रहा हूँ ... 
उसी की वज़ह से मै ये लिख रहा हूं ।

उसी की वज़ह से है तरतीब मे सब ,
ये खुर्शीद- तारे
बताओ क्यों जगमग चमकते 
सुब्हो शाम ?
आखिर
क्या मसला है इनका ... ?
यक़ीनन 
महज़ जल रहे है 
जो कर ली है रंजिश उसी से,
जिसे अपना महबूब कहने की
ख्वाहिश दबाये हुए दिल  हमारा...
जिये जा रहा है ,
किये जा रहा है _
वही काम अपना 
बताती है जितना उसे बायोलॉजी ।

तुम्हे उसकी तस्वीर कैसे दिखाऊं ,
जिसे देख कर कैमरे हों दिवाने 
सभी अपने फंक्शन भुला दें ।
भुला दें _
लगा टाइमर 
सेल्फ़ी लेने की कोशिश 
करी हमने जब भी
मियां नीप्से ! कैमरा ये हमेशा ही भूला
कि क्या काम उसका ....
ये ब्लर - फ़्लैश - पोट्रेट 
ये टाइमर...
ये पल पल के मसले ...
नहीं उसको आते
ज़रा भी ज़रा भी ।
यकीं मानो हम  देखते है 
उसे  अब भी 
बंद करके आंखे ।
खुली आंखो से झेलना ताब उसका 
भला किसको मुमकिन।

उसका अंदाज़े गुफ़्तार  है शाइराना
उसी की ज़ुबां से चुरा कर के अल्फाज़ 
सदी भर से नग़मे लिखे जा रहे है;
उसी को तसव्वुर मे ला कर के शाइर
क़ता -शेर -नज़्मे लिखे जा रहे है;
लिखे जा रहे है...हजारो किताबें
इधर मेरे अरमां....बिके जा रहे है 
मुझे जो भी कहना था _
लिखना बताना था_
वो सब  मुझसे पहले 
लिखा जा चुका है 
कहा जा चुका है
सुना जा चुका है ।

ये चांदी का छल्ला _
जो चौतीस महीनों से 
मैं अपनी उंगली मे
पहने हुए हूं .... उसी ने दिया है ।
ये नन्हा सा टैटू _ 
जो है मेरे सीने पे 
जिसकी वजह से हज़ारो सवालों से 
रिश्ता जुड़ा था _ 
महज एक टैटू नहीं है
ये उसकी मुहब्बत है
जो शाया हुई है 
जिस्म पर हमारे ।

भला उसके बारे मे कैसे बताऊं,,
कहॉ तक बताऊं,,
मैं क्या - क्या बताऊं ? 
बस इतना समझ लो -
जहाँ भर के मुद्दे ,
जहाँ भर के मसले,
सभी बाद मे थे....
थे दोयम सभी ही_ _ कि 
अव्वल तो रब चाहता होगा देना
ज़माने को उस जैसी 
जागीर इस दिन ।

#मुकम्मल हुई थी खुदा की बनाई 
एक बेहद निराली सी 
तस्वीर इस दिन ।

#समीक्षित
#शिवम_सागर

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