Posts

Showing posts from May, 2020

जिंदगी अगर मौका दे तो सोनू सूद बनना ।

Image
स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंगों में उनकी एक जापान यात्रा का वर्णन आता है , जिसमें वे जापान के किसी स्टेशन पर अच्छे फल ना मिलने की बात कहते हैं और उनकी यह बात एक जापानी नौजवान सुन लेता है । वह फौरन टोकरी भर फल उन तक पहुंचाता है । कीमत पूछने पर केवल यही कहता है कि - 'भारत में किसी से यह मत कहिएगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते । ' राष्ट्रप्रेम और निस्वार्थ कर्म इन भावों से परे आखिर और क्या है ।   1986 में आई फिल्म 'अंकुश' में एक गीत है-  'इतनी शक्ति हमें देना दाता' उसी में पंक्तियां आती हैं -     हम ना सोचें हमें क्या मिला है       हम ये सोचें किया क्या है अर्पण  और केवल इतना ही सत्य काफी है जीवन को संतुलित और संयमित बनाए रखने के लिए।  देश किसी जड़ स्थिति का नाम नहीं है। यह गतिमय भाव है जो हर एक व्यक्ति की गति से प्रभावित होता है । तिरंगे में मौजूद गतिशील चक्र उसकी परिवर्तन की निरंतरता का प्रमाण है।  वह प्रतिपल परिवर्धित होती सत्ता है।  यह सत्ता अपनी जीवंतता हमसे ही ग्रहण करती है और जीवंतता आशाओं और उम्मीदों...

असुविधा के लिए खेद है ।

Image
''कौन सी दुनिया में रहते हो तुम ? कितना कुछ झेला है हिंदुस्तान ने इन लोगों की वजह से...आज तुम जैसे कुछ लोग कुछ समझते ही नहीं ।''.......  '' राजपूतों और मराठों के इतिहास को मिटा रहे हैं तुम जैसे लोग ।''.....    ''क्या हो गया है सभी हिंदुओं को '' .......  ''पाकिस्तान शिफ्ट हो जाना चाहिए '' ...... आदि आदि । ईद मुबारक़ के स्टेटस लगाने से पहले ही मुझे पता था कि हर बार की तरह इस बार भी कई जगह से तीखी प्रतिक्रिया आएंगी।  अब जो भी हो मैं ऐसा ही हूं । और वास्तव में ही . . .मैं ना जाने कौन सी दुनिया में रहता हूं . . . जो मेरे आस- पास आने वाले और धीरे-धीरे मेरे खास बन जाने वाले अधिकांशतः लोग अपनी जाति- धर्म की उन 'सो कॉल्ड' छवियों से दूर,  बहुत दूर होते हैं जिन छवियों के कारण उन्हें प्रशंसित  या दमित किया जाता रहा है।   मैं ऐसे मुस्लिमों को जानता हूं जिन्होंने अपने कमरे में राधा कृष्ण की मूर्ति रखी हुई है,  जिन्होंने अपने आँगन में तुलसी का पौधा लगाया हुआ है । ऐसे ब्राह्मणों को जानता हूं जो उर्दू से लेकर नमाज़ पढ़ने तक के तौर ...

. . . . मज़दूर आ रहे हैं

Image
मज़दूर आ रहे हैं ।  वे आ रहे हैं क्योंकि शासन प्रशासन उन तक नहीं जा पाया । वे आ रहे हैं क्योंकि वो शहर उनको रोकने की शक्ति नहीं जुटा पाए जिनको बसाने में उनके कंधों ने बोझ उठाया था , जिस को बसाए रखने में उनके जिस्म दोहरा गए थे । बच्चों को छोड़कर घर-घर काम करने वाली हज़ारों-हज़ार महिलाएं  आज अपने बच्चों को लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर रही  है । जिन घरों में सुबह-शाम की जीवन शैली उन पर निर्भर हुआ करते थी, उनमें से कोई भी घर इनको रोक पाने में सक्षम नहीं हो पाया । मेरा एक दोस्त दिल्ली के आकर्षण से खिंच कर वहां गया था, कई साल वहां रहने के बाद घटनाक्रम कुछ यूं बना कि वापस उसे यही लौटना पड़ा । आज वह सामान्य बातचीत में भी कह देता है कि ''दिल्ली किसी की नहीं हो सकती''। असल में शहरीकरण ने आंखों में चकाचौंध तो खूब भरी पर गरीब का पेट भरने में वो काफ़ी सफल नहीं हो सका । संविधान से जीवन और आजीविका की गारंटी मिलने भर से जीवन और आजीविका का मिलना और उसका बना रहना सुनिश्चित नहीं होता । मोबाइल जर्नलिज्म के इस दौर में उन मज़दूरों की पीड़ा , उनके दर्द को बयां करते ना जाने कि...

यूट्यूब वर्सेज टिकटॉक के बहाने स्त्री, किन्नर और समलैंगिक अस्मिता पर बात ।

Image
चेतावनी - यहां मैं ना तो यूट्यूब पर बात कर रहा हूं और ना टिक-टॉक पर । मैं केवल और केवल  समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की बात कर रहा हूं,,, जिन पर व्यंग्य तो बहुत होते है , पर बात नहीं होती ।  जब एक यूट्यूबर द्वारा यह कहा जाता है कि- ''  इनका स्टेमिना ही 15 सैकेंड का है  '' तब आप सभी को पता होता है कि वहां किस तरह के स्टेमिना की बात हो रही है । हम एक समाज के तौर पर शायद ही कभी इतने विकसित हो पाए कि किसी का विरोध करने के लिए,  अपनी विरोधी प्रतिक्रिया को दर्ज कराने के लिए हम उसके (या अपने )  धर्म, जाति, रंग ,क्षेत्र ,लिंग ,सेक्सुअलिटी ,बॉडी शेप  आदि को बीच में ना लाएं  टिक टॉक के कंटेंट को लेकर कई तरह के सवाल 'यूट्यूब वर्सेस टिक-टॉक' की चर्चा उठने से पहले ही उठने लगे थे । इस सो कॉल्ड ट्रेंड के आने से पहले ही अपने कंटेंट के कारण टिक-टॉक की आलोचना होती ही रही है । हालांकि आलोचना तो पब-जी की भी हुई । उसको एक नशे की तरह देखा गया , पर एक समय के बाद लड़ाई दंगो वाला यह खेल लड़कों का मनपसंद बन गया।  पब-जी खेलने वालों को 'विनर विनर चिकन डिनर' मिला और...