केदारनाथ सिंह स्मरण

#समीक्षित

#प्रियकवि_केदारनाथसिंह

''मैं क्यों और कैसे लिखता हूं इसका कोई सीधा उत्तर मेरे पास नहीं है बस इतना जानता हूं कि मेरे लिखने की यात्रा मेरे बोलने से शुरू होती है मैं बोलता हूं इसलिए लिखता हूं ।''

×        ×           ×

'' कविताएं किसी व्यक्ति पर नहीं समय पर लिखी जाती हैं ''

×           ×           ×

#समीक्षित

#प्रियकवि_केदारनाथसिंह

''मैं क्यों और कैसे लिखता हूं इसका कोई सीधा उत्तर मेरे पास नहीं है बस इतना जानता हूं कि मेरे लिखने की यात्रा मेरे बोलने से शुरू होती है मैं बोलता हूं इसलिए लिखता हूं ।''

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'' कविताएं किसी व्यक्ति पर नहीं समय पर लिखी जाती हैं ''

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उसका हाथ 
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को 
हाथ की तरह गर्म हो सुंदर होना चाहिए ❤❤🌷

×          ×            ×

पर मौसम  
चाहे जितना खराब हो 
उम्मीद नहीं छोड़ती कविताएं 
वे किसी अदृश्य खिड़की से 
चुपचाप देखती रहती हैं 
हर आते-जाते को 
और बुदबुदाती हैं 
धन्यवाद ! धन्यवाद !

- केदारनाथ सिंह असंदिग्ध प्रतिबद्धता के  कवि है । उनकी कविता ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया ... अपनी काव्य यात्रा के 60 वर्षों के दौरान केदारनाथ सिंह  अपने समय और समाज के सच को पूरी प्रखरता के साथ उजागर करते रहे । इन 60 वर्षों में  उनकी स्वयं की विचारधारा और मान्यताओं में आए परिवर्तन उनकी कविताओं में परिलक्षित होते हैं ।

समकालीन कविता के दौर में काव्य जगत में हो रही हलचलें कई छोटे-बड़े आंदोलन और वादों की स्थापना के प्रयास जहां केदारनाथ सिंह को प्रभावित करते हैं. . . वहीं वे सब स्वयं उनसे भी प्रभाव ग्रहण करते हैं । इन हलचलों के मध्य केदार जी की कविता  एक प्रकार के ठहराव की कविता है  ।   केदारनाथ सिंह  किसी वाद या आंदोलन से किसी हड़बड़ी में प्रभावित होते नहीं दिखते , उनकी कविता किसी वाद या हलचल का हिस्सा बनने मात्र के लिए लिखी गई कविता नहीं है । उनकी कविता के उद्देश्य वृहद हैं । वे समकालीन कविता के उन प्रमुख कवियों में से हैं जिनकी उपस्थिति कविता के पथ का निर्माण करती चलती है  और कई ऐसे वादों-  काव्यान्तरों को मान्यता देने से इंकार कर देती है जो काव्य पथ को  प्रशस्त करने के स्थान पर उसका पथ अवरुद्ध करते प्रतीत हों ।

 यह संयोग नहीं है कि केदारनाथ सिंह युवा कवियों के बीच लोकप्रिय हैं और उनके बनाए हुए काव्य मुहावरों का प्रयोग समकालीन हिंदी कविता में किया जा रहा है ,  आज के युवा कवियों में उनकी कविताओं की प्रतिछायाएं सहजता से मिल जाती हैं , , , क्योंकि स्वयं केदारनाथ सिंह की कविता युवा कविता का एक बेहतरीन उदाहरण है ।   संघर्षरत मनुष्य और बेहतर भविष्य का स्वप्न उनकी कविताओं के केंद्र में है । , , ,और यह सिर्फ भावुक चिंताएं ही नहीं हैं बल्कि अपने समकाल के सामाजिक - राजनीतिक सरोकारों की चिंताएं हैं-

''ठंड से 
नहीं मरते शब्द 
वे मर जाते हैं 
साहस की कमी से ।''

-  मंगलेश जी ने एक लेख में लिखा था कि '' वे नागार्जुन के बाद सबसे लोकप्रिय कवि थे । वे गीतकार से होते हुए कवि बने थे इसलिए उनकी कविता में रवानगी थी,  बिंब सीधे दिल को छूते थे,  वे डूबकर कविता पाठ करते थे ''

भाषा के प्रति केदार जी की चिंता हमेशा उनकी कविताओं में परिलक्षित होती है। वे  लोक भाषा के कई शब्दों और मुहावरों को खड़ी बोली तक लेकर आए । मातृभाषा के प्रति उनका लहजा पूरी तरह आत्मीय है और यह आत्मीयता दिल्ली जैसे महानगर में रहने के बावजूद कम नहीं होती बल्कि बराबर बढ़ती रही।  कुंवर नारायण कहते हैं- '' केदार एक सावधान कवि होने के नाते भाषा के प्रति इस बुनियादी जिम्मेदारी को लेकर सचेत रहे हैं कि उसकी विश्वसनीयता दूषित ना होने पाए ।''

'' ओ मेरी भाषा 
मैं लौटता हूं तुम में 
जब चुप रहते रहते 
अकड़ जाती है मेरी जीभ 
दुखने लगती है 
मेरी आत्मा ''

 केदार जी मनुष्यता के प्रति आस्थावान कवि हैं और उनका काव्य कर्म इसी उद्देश्य से संचालित होता है । हालांकि वे कविता के माध्यम से किसी प्रकार का उपदेश देने से हमेशा बचते रहे हैं । अपनी एक वक्तव्य में वह कहते हैं कि - ''  मैं अपने मन को बराबर खुला रखने की कोशिश करता हूं ताकि वह आस-पास के जीवन की हल्की से हल्की आवाज को भी प्रतिध्वनित कर सके । ''  और उनकी कविताएं इन प्रतिध्वनियों की,  इन अनुगूँजों की प्रमाण हैं  जहां हमें टमाटर बेचने वाली बुढ़िया , इब्राहिम मियां,  बबूल के नीचे लेटे बच्चे और ऊंट वाले से लेकर  कबीर , कुंभनदास , ज्यां पाल सात्र , तू फू, तॉल्सताय सब मिलते हैं । इसके अलावा पेड़ , घास, नदी , धूप , मिट्टी , हवा, सूर्य,  पृथ्वी सबको इकट्ठा कर एक अलग ही सृष्टि का निर्माण कर देते हैं इसीलिए तो वे कह पाते हैं कि - 

''मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में ।''

×            ×              ×

''और अंत में 
मैं घोषित करता हूं कि 
जो स्वस्थ है 
वह सबसे अधिक बीमार है 
जो हंसता है 
उसे सहानुभूति की जरूरत है 
जो चल रहा है 
वह खड़ा है 
जो बोल रहा है 
वह कहीं ना कहीं चुप है 

मैं घोषित करता हूं 
कि जो सच है 
वह सच नहीं है 
जो जानता है 
उस तक खबर अभी पहुंची ही नहीं 
जो हुक्म देता है 
वह डरा हुआ है 
जो फैसला देता है 
उसे पता नहीं ''

#जन्मतिथि #केदारनाथसिंह

Shivam Saagarउसका हाथ 
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को 
हाथ की तरह गर्म हो सुंदर होना चाहिए ❤❤🌷

×          ×            ×

पर मौसम  
चाहे जितना खराब हो 
उम्मीद नहीं छोड़ती कविताएं 
वे किसी अदृश्य खिड़की से 
चुपचाप देखती रहती हैं 
हर आते-जाते को 
और बुदबुदाती हैं 
धन्यवाद ! धन्यवाद !

- केदारनाथ सिंह असंदिग्ध प्रतिबद्धता के  कवि है । उनकी कविता ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया ... अपनी काव्य यात्रा के 60 वर्षों के दौरान केदारनाथ सिंह  अपने समय और समाज के सच को पूरी प्रखरता के साथ उजागर करते रहे । इन 60 वर्षों में  उनकी स्वयं की विचारधारा और मान्यताओं में आए परिवर्तन उनकी कविताओं में परिलक्षित होते हैं ।

समकालीन कविता के दौर में काव्य जगत में हो रही हलचलें कई छोटे-बड़े आंदोलन और वादों की स्थापना के प्रयास जहां केदारनाथ सिंह को प्रभावित करते हैं. . . वहीं वे सब स्वयं उनसे भी प्रभाव ग्रहण करते हैं । इन हलचलों के मध्य केदार जी की कविता  एक प्रकार के ठहराव की कविता है  ।   केदारनाथ सिंह  किसी वाद या आंदोलन से किसी हड़बड़ी में प्रभावित होते नहीं दिखते , उनकी कविता किसी वाद या हलचल का हिस्सा बनने मात्र के लिए लिखी गई कविता नहीं है । उनकी कविता के उद्देश्य वृहद हैं । वे समकालीन कविता के उन प्रमुख कवियों में से हैं जिनकी उपस्थिति कविता के पथ का निर्माण करती चलती है  और कई ऐसे वादों-  काव्यान्तरों को मान्यता देने से इंकार कर देती है जो काव्य पथ को  प्रशस्त करने के स्थान पर उसका पथ अवरुद्ध करते प्रतीत हों ।

 यह संयोग नहीं है कि केदारनाथ सिंह युवा कवियों के बीच लोकप्रिय हैं और उनके बनाए हुए काव्य मुहावरों का प्रयोग समकालीन हिंदी कविता में किया जा रहा है ,  आज के युवा कवियों में उनकी कविताओं की प्रतिछायाएं सहजता से मिल जाती हैं , , , क्योंकि स्वयं केदारनाथ सिंह की कविता युवा कविता का एक बेहतरीन उदाहरण है ।   संघर्षरत मनुष्य और बेहतर भविष्य का स्वप्न उनकी कविताओं के केंद्र में है । , , ,और यह सिर्फ भावुक चिंताएं ही नहीं हैं बल्कि अपने समकाल के सामाजिक - राजनीतिक सरोकारों की चिंताएं हैं-

''ठंड से 
नहीं मरते शब्द 
वे मर जाते हैं 
साहस की कमी से ।''

-  मंगलेश जी ने एक लेख में लिखा था कि '' वे नागार्जुन के बाद सबसे लोकप्रिय कवि थे । वे गीतकार से होते हुए कवि बने थे इसलिए उनकी कविता में रवानगी थी,  बिंब सीधे दिल को छूते थे,  वे डूबकर कविता पाठ करते थे ''

भाषा के प्रति केदार जी की चिंता हमेशा उनकी कविताओं में परिलक्षित होती है। वे  लोक भाषा के कई शब्दों और मुहावरों को खड़ी बोली तक लेकर आए । मातृभाषा के प्रति उनका लहजा पूरी तरह आत्मीय है और यह आत्मीयता दिल्ली जैसे महानगर में रहने के बावजूद कम नहीं होती बल्कि बराबर बढ़ती रही।  कुंवर नारायण कहते हैं- '' केदार एक सावधान कवि होने के नाते भाषा के प्रति इस बुनियादी जिम्मेदारी को लेकर सचेत रहे हैं कि उसकी विश्वसनीयता दूषित ना होने पाए ।''

'' ओ मेरी भाषा 
मैं लौटता हूं तुम में 
जब चुप रहते रहते 
अकड़ जाती है मेरी जीभ 
दुखने लगती है 
मेरी आत्मा ''
 केदार जी मनुष्यता के प्रति आस्थावान कवि हैं और उनका काव्य कर्म इसी उद्देश्य से संचालित होता है । हालांकि वे कविता के माध्यम से किसी प्रकार का उपदेश देने से हमेशा बचते रहे हैं । अपनी एक वक्तव्य में वह कहते हैं कि - ''  मैं अपने मन को बराबर खुला रखने की कोशिश करता हूं ताकि वह आस-पास के जीवन की हल्की से हल्की आवाज को भी प्रतिध्वनित कर सके । ''  और उनकी कविताएं इन प्रतिध्वनियों की,  इन अनुगूँजों की प्रमाण हैं  जहां हमें टमाटर बेचने वाली बुढ़िया , इब्राहिम मियां,  बबूल के नीचे लेटे बच्चे और ऊंट वाले से लेकर  कबीर , कुंभनदास , ज्यां पाल सात्र , तू फू, तॉल्सताय सब मिलते हैं । इसके अलावा पेड़ , घास, नदी , धूप , मिट्टी , हवा, सूर्य,  पृथ्वी सबको इकट्ठा कर एक अलग ही सृष्टि का निर्माण कर देते हैं इसीलिए तो वे कह पाते हैं कि - 

''मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में ।''

×            ×              ×

''और अंत में 
मैं घोषित करता हूं कि 
जो स्वस्थ है 
वह सबसे अधिक बीमार है 
जो हंसता है 
उसे सहानुभूति की जरूरत है 
जो चल रहा है 
वह खड़ा है 
जो बोल रहा है 
वह कहीं ना कहीं चुप है 

मैं घोषित करता हूं 
कि जो सच है 
वह सच नहीं है 
जो जानता है 
उस तक खबर अभी पहुंची ही नहीं 
जो हुक्म देता है 
वह डरा हुआ है 
जो फैसला देता है 
उसे पता नहीं ''

#जन्मतिथि #केदारनाथसिंह

Shivam Saagar

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