कविताएं संपन्न हुई

मैंने उससे पूछा .....कि ........क्या तुम मिलने आओगी ? .......तो  उसने कोई जवाब ही नहीं दिया..... मैंने कुछ देर बाद फिर से पूछा कि क्या तुम मिलने आओगी ? वह इस बार भी खामोश रही |... पर खामोशी का मतलब हां नहीं था .......हर खामोशी का मतलब हां होता भी नहीं हमेशा ........लेकिन अक्सर मान लिया जाता है मौन को स्वीकृति का समानार्थी .........लेकिन मैंने नहीं माना और एक निश्चित सीमा तक राह देखने के बाद मैंने डाल दिया उसके मन को इंकार की खाते में |

वैसे इस सब के बाद मुझे सिसकना चाहिए था .......तड़पना चाहिए था........ थोड़ा रोना चाहिए था पर मैंने अपने सीने में कुछ मजबूत सा महसूस किया, अपने जज़्बातों को पत्थर बनते देखा मैंने .....सीने के जिस कोने में संभाल के रखे थे प्यार के  तरल भाव. ..वह मानो लावा में तब्दील होते गए .........धीरे धीरे सब कुछ मिट गया ,,,,,,,वह हिस्सा जहां मृदुल रागनियां रहती थी ,, वह हिस्सा जहां सौम्य स्मृतियां रहती थी,, वह भाग जहां जन्मती थीं कविताएं .......सब खंड खंड हुआ |

काफी देर तक मैं वहीं बैठा रहा उसके चले जाने के बाद भी और फिर उसी रात को मैंने अपनी पहली कहानी लिखी..... कविताओं की लाश पर जन्मी पहली नीरस कहानी |

अब मुझसे यह मत पूछना कि क्या हुआ मेरी कविताओं का |

शिवम सागर समीक्षित |

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