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Showing posts from May, 2019

निखिल।

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#समीक्षित '' गिटार के तार बजते भले ही बाहर हों ... पर छेड़ा उन्हें अंदर जाता है .., दिल के अंदर ।''- माधव निखिल को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था । निखिल को घंटा कुछ समझ आ रहा था । आस-पास के दो-चार मुहल्लों में अगर कोई लड़का इन दिनों सच्चे इश्क में था , तो वह निखिल था । इश्क के शहर में अभी हाल ही में दाखिल हुए निखिल को  इश्क हर मर्ज की दवा लगता , हर मुश्किल का हल लगता । इन दिनों हर बात , हर मसले - मुश्किल को सुलझाने की कुब्बत रखने वाला निखिल ''मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती'' वाले पड़ाव पर जी रहा था ''घर वाले नहीं मानेंगे'' वाली सच्चाई से बिल्कुल बेखबर  । वो बड़े खूबसूरत सपने सजाता और उन्हे अपने दोस्तों के साथ में साझा करता । माधव को इश्क में नाकाम होते देख सोचता कि उसके और कामिनी के बीच आने वाली मुश्किलों को वह कितने अच्छे से हैंडल कर लेता है । वो माधव को भी एक सांस में कई सजेशन दे डालता है , माधव सुनता है उसे .... बड़ी खामोशी के साथ ।  आखिर बस मुस्कुरा देता है । करने को माधव आगाह कर सकता है निखिल को पर निखिल ने अभी-अभ...

रास्ते ।

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कार अपनी स्पीड से चले जा रही है  । कालपी से हमीरपुर को जाता यह हाईवे लगभग खाली है  । म्यूजिक प्लेयर गाने बजाए जा रहा है  ;  ''तेरा चेहरा '' खत्म होकर ''तेरा घाटा '' बजने लगा  । मैंने बदलने के लिए हाथ बढ़ाया पर माधव ने रोक दिया। मैंने माधव की तरफ देखा , वह बाहर की तरफ देख रहा था । बाहर अंधेरे में वह न जाने क्या देखने की कोशिश कर रहा है ; कई किलोमीटर दूर किसी गांव की टिमटिमाती लाइट्स दूर से काफी अच्छी लग रही है  । '' थोड़ी देर रोक लूं क्या ? ''-  मैंने पूछा '' नहीं चलने दो '' - उसने वैसे ही बैठे-बैठे कहा । तभी फोन वाइब्रेट हुआ , शायद आस्था फोन कर रही होगी ; ये  पूछने के लिए कि मैं अभी पहुंचा या नहीं ।  अब लगभग 15 - 20 मिनट और लगेंगे । वहां पहुंचकर ही देखूंगा । माधव ने खिड़की का शीशा खोल लिया । हवा की ठंडक महसूस होने लगी तुरंत ही ।  कुछ कहना चाह कर भी मैं चुप रहा ; अब कुछ मिनट में थम जाएगा यह सफर भी ....ना चाहने के बाद भी । ना जाने यह सड़क कितनी दूर तक जाती है । शिवम् सागर समीक्षित । +91955730...

मौजूदगी ।

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मौजूदगी इस बिस्तर पर बैठकर आज कुछ भी लिख पाना मुमकिन नहीं है.... इसकी एक-एक सिलवट मुझे बीते हुए कल में खींचकर ले जा रही है । हालांकि एक झटके में मिटाई जा सकती है इस पर नजर आ रही सारी सिलवटें .....पर मन , मन मारकर कर बैठा है एकदम चुपचाप। तकिया अभी भी दीवार से लग कर ही रखा हुआ है  , किसी भी तरह के बदलाव की जरूरत से एकदम बेखबर । कमरे में मौजूद है एक खुशबू अब तक ; मेरा दिमाग रोक रहा है मुझे सांसे लेने से , इल्जाम लगा रहा है मुझ पर कि मेरी वजह से मिट रही है कमरे से खसखस और गुलाब के मिले-जुले एहसास वाली खुशबू । मेरा बस चलता तो यूनेस्को द्वारा संरक्षित करवा देता यह कमरा.... यह घर... यह गली... सब । पर मेरे बस में नहीं है इतना भी कि एक बोर्ड रख दूं यहां जिस पर लिखा हो - ''प्रवेश वर्जित । कार्य प्रगति पर है । '' कविताओं के अनबूझे अर्थ आज समझ आ रहे हैं... खुल रहे हैं खुद-ब-खुद ; कमरे का टेंपरेचर भी बाहर  से कई गुना कम है ; गिटार बजा रहा है मदमस्त धुनें अपने आप ही । कल शाम को वो यहींं थी इसी कमरे में   शिवम् सागर समीक्षित ♥ 9557301043

वो मेरी सिर्फ दोस्त है ।

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दोपहर में उसका फोन आया , मैं उठा नहीं पाया; कुछ देर बाद उसका मैसेज आया, पर मैंने रिप्लाई नहीं किया । शाम को जब उसे बताया कि मैं माधव के साथ था और उसने सवाल कर दिया कि ''कौन माधव ? '' तब लगा इन दिनों की अपने सब से खास साथी से तो मैंने उसे मिलवाया नहीं  । मैंने बताना शुरू किया- '' माधव मेरा दोस्त इधर 4 - 5 महीनों से जानता हूं उसे , अच्छा नेक दिल लड़का है बस संवेदना के छोड़के चले जाने के बाद से परेशान हो गया है , उसका भरोसा टूट गया है जैसे । अब शायद वह किसी ऐसे को ढूंढ रहा है जो उसके पास आकर , नजदीक बैठकर , उसके साथ अपनी शाम को  बिना शर्त के बिताते हुए कहे कि उसे भरोसा है माधव पर । '' चलिए सुविधा के लिए बता दूं कि मैं जिस से बात कर रहा हूं उसका नाम आस्था है और इसे पिछले 1 साल 7 महीने से जानता हूं  । मैंने आस्था से पूछ दिया कि क्या माधव को हक नहीं है एक बार संवेदना से चिल्लाकर पूछे कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया ? '' मैं होती तो मार-मार के पूछती कि क्यों किया  ऐसा ... लेकिन वो माधव है उसकी मर्जी ....  हक की बातें थोड़े समय तक ही  रहती है ।'...