मौजूदगी ।

मौजूदगी
इस बिस्तर पर बैठकर आज कुछ भी लिख पाना मुमकिन नहीं है.... इसकी एक-एक सिलवट मुझे बीते हुए कल में खींचकर ले जा रही है । हालांकि एक झटके में मिटाई जा सकती है इस पर नजर आ रही सारी सिलवटें .....पर मन , मन मारकर कर बैठा है एकदम चुपचाप। तकिया अभी भी दीवार से लग कर ही रखा हुआ है  , किसी भी तरह के बदलाव की जरूरत से एकदम बेखबर ।

कमरे में मौजूद है एक खुशबू अब तक ; मेरा दिमाग रोक रहा है मुझे सांसे लेने से , इल्जाम लगा रहा है मुझ पर कि मेरी वजह से मिट रही है कमरे से खसखस और गुलाब के मिले-जुले एहसास वाली खुशबू ।
मेरा बस चलता तो यूनेस्को द्वारा संरक्षित करवा देता यह कमरा.... यह घर... यह गली... सब । पर मेरे बस में नहीं है इतना भी कि एक बोर्ड रख दूं यहां जिस पर लिखा हो -
''प्रवेश वर्जित । कार्य प्रगति पर है । ''

कविताओं के अनबूझे अर्थ आज समझ आ रहे हैं... खुल रहे हैं खुद-ब-खुद ; कमरे का टेंपरेचर भी बाहर  से कई गुना कम है ; गिटार बजा रहा है मदमस्त धुनें अपने आप ही ।

कल शाम को वो यहींं थी इसी कमरे में  

शिवम् सागर समीक्षित ♥
9557301043

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