माधव की डायरी 2
माधव ने आज फिर एक पुरानी डायरी उठा ली ।
उस पन्ने पर ठीक से लिखा दिख रहा था सब कुछ लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वहां उस दिन सब ऐसा ही था ।
माधव को अच्छे से याद है कि उस शाम भी ठीक सा दिख रहा था सब, अच्छे से बातें करते - करते उसने नाश्ता किया था पूर्वा के घर पर ; तारीफ की थी पकोड़ों की । सूरज ढलने के बाद मौसम में सर्दपन महसूस होने लगा था । वहां से लौटते वक्त उसने लंबा रास्ता अख्तियार किया था और सोचा था कि अच्छा होता अगर वह हाफ स्वेटर पहन के निकला होता । दुर्गा पूजा पार्क के आगे वाली गली में उसे विनायक मिला था । कुछ देर बात हुई थी उससे भी , उसी ने बताया था कि पुनीत दोस्तों के साथ 'अपने नए दोस्तों के साथ' हिमाचल घूमने गया है । हम लोगों से पूछना तो दूर , बताया तक नहीं । घर आते-आते माधव को देर हो गई थी । माधव के लिए घर में देर से पहुंचने का मतलब था पापा के घर आने चुकने के बाद घर पहुंचना; और पापा किस दिन , किस वक़्त लौटेंगे... यह पूरी तरह पापा को भी कंफर्म नहीं होता था । पर पापा ने भी उस दिन कुछ नहीं कहा । मम्मी ने भी छोले बनाए थे उस दिन...... कितना अच्छा था वह दिन !
माधव को हैरानी की हद तक सब कुछ बेहद तरतीबी से याद है, जैसे लिख- लिख कर याद किया हो सब ।
माधव झुंझलाया खुद पर कि उस दिन के इन खट्टे मीठे पहलुओं को क्यों नहीं दर्ज किया गया डायरी के पन्नों में । उसने डायरी के उस पन्ने को घूर के देखा और फिर से पढ़ना शुरू किया । उसमे लिखा था --
''तीन बार फोन किया पूर्वा ने पर स्नेहा के पास वक्त तक नहीं था इतना भी कि फोन उठाया जा सके । अब अगर दिमाग से पूछा जाए तो वह कहेगा कि जनाब वास्तव में आपने समय बर्बाद किया। इससे आपको कुछ नहीं मिला । पूर्वा के यहां बैठकर स्नेहा के आने का इंतजार करना सही नहीं था । इससे बेहतर उसकी गलियों की तरफ हो गए होते । बहरहाल जो होना था सो हुआ या ; फिर जो नहीं होना था सो हुआ । पूर्वा के पकौड़ों की तारीफ की मैंने। जब आंटी से नमस्ते करते हुए निकला तो ही सब ठीक था ।
पर अभी 10 मिनट पहले फोन आया पूर्वा का, आवाज से साफ से समझ आ रहा था कि रोयी है काफी देर तक। घड़ी अभी 11:10 बजा रही थी और उसने मुझसे बिना किसी भूमिका के पूछा - '' माधव मेरे साथ कहीं बाहर चलना हो अचानक से तो चलोगे न ।'' कुछ समझ ना आते हुए भी मैंने 'हां' कह दिया । क्या पता कितना ठीक था ।'"
पर अभी 10 मिनट पहले फोन आया पूर्वा का, आवाज से साफ से समझ आ रहा था कि रोयी है काफी देर तक। घड़ी अभी 11:10 बजा रही थी और उसने मुझसे बिना किसी भूमिका के पूछा - '' माधव मेरे साथ कहीं बाहर चलना हो अचानक से तो चलोगे न ।'' कुछ समझ ना आते हुए भी मैंने 'हां' कह दिया । क्या पता कितना ठीक था ।'"
- माधव सोचने लगा फिर से कि उसके बाद कितनी मर्तबा मुलाकात हुई पूर्वा से पर उस रात का जिक्र किसी ने भी कभी भी नहीं किया । उस समय कितना परेशान था वो इस बात को लेकर जो अब कितनी फिजूल की लग रही है । अब , उस वक्त से काफी दूर आकर , उसे मानो काफी कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा है ।
माधव ने डायरी बंद करके रख दी । वो ज्यादा कुछ सोचना नहीं चाहता ।
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