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Showing posts from April, 2020

मुबारक नाज़िया दीदी

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#समीक्षित ग़ज़ालों सी फुदकती  लड़कियों की नस्ल में  अव्वल  तुम्हारा नाम ही आता  उभरकर ज़हन में मेरे , मै तुमको जानता हूँ  पिछले पूरे सात सालों से अगर चाहो तो  दो महीने छब्बीस दिन और भी लिख लो ,  भला इस बात की  कैसे खुशी ज़ाहिर करे ये दिल  कि तुमको जान पाया मैं  कि तुमको मान पाया मैं । हंसी तेरी बड़ी अल्हड़  बिखर जाती है औ' कर देती है  बेआब फूलों को  सभी गुलशन ख़फ़ा तुमसे  लिए अपनी शिकायत  फिर रहे हैं __ पूछते हैं कौन सी शै  है  जो रहती है तेरे रुख में भला किसको पता?  मगर इस ख़ल्क का माली  खुदाया ! जानता है कि  वो शै पाकीज़गी  ही है  वो शै संजीदगी ही है  वो शै बस साफ़गोई है।  कई मसले  मुसलसल दौड़ते हैं बस तेरी जानिब ... कई मुद्दों के पीछे  दौड़ना तुमको भी होता है ,  कई एक मामलों से  हद परेशां हो चुकी हो तुम ... कभी खुद से  कभी सबसे  कभी रब से लड़ी हो तुम।  मैं छोटा हूं  अगर माफ़ी मिले  तो कुछ नसीहत दूं  कभी बेसब्र ना होन...

किताबों की बात

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#समीक्षित_विचार आज एक मित्र (Devanshu Singh ) ने प्रश्न किया कि मेरी किताबें मुझसे क्या कहती है....क्या बातें करती हैं ?.....अब इस प्रश्न का कोई सहज उत्तर नहीं है मेरे पास...सो माफ करना उत्तर किंचित दीर्घात्मक होने की सम्भावना है | मॉ_बताती_हैं कि मै ढाई बरस का था जब अक्षर मिलाकर पढ़ना सीख गया था....इस आधार पर यह माना जा सकता है कि किताबों से बतियाने का सिलसिला करीब 19 बरस से चल रहा है....अनगिनत किताबों से बातें हुई इन 19 बरसों में ,प्रमाणिक रूप से संख्या तो बताना संभव ही नहीं | हॉ अगर पिछले कुछ वर्षों की बात की जाये तो कह सकता हूँ कि पिछले छः वर्षों मे करीब 50 कविता संग्रहों और इतने ही उपन्यासों और कहानी संग्रहों के इतर विधाओं की करीब 200 किताबों से बाते हुईं | और करीब 150 पुस्तके अभी वरीयता की ऊपरी दो सीढ़ियों पर शेष भी है | दिनकर जी कहते थे कि "लेखक जीवन भर एक ही किताब लिखता है"......दूधनाथ जी मानते है कि " विभिन्न पात्रों के सभी विचार लेखक के ही होते है...वह उसके व्यक्तित्व का ही खण्ड - खण्ड रूप है "  यदि थोड़ी सी छूट मिले तो #मै_कहूंगा_कि  पाठक भी ए...

गीत।

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जिस रिश्ते को प्रीति के जैसा नाम मिला था दुनिया से  किसे पता की उस रिश्ते में तुम भी थीं या केवल हम ? प्रेमी मन,व्याकुल तन की अकुलाहट से उकता आया है नयन दूत  वाचाल ,  तेरे निष्ठुर मन  से  कहता  आया है  आन मिलो ओ प्रियतम मेरे  _आन मिलो मेरे प्रियतम । बादल के गुच्छों को संबोधित कर गीत सुना देता हूं  पंछी अगर ठहरकर कुछ पूछे, उसको बदला देता हूं  हां! हां ! ठीक तुम्हारे जैसी  है उस बोली की सरगम । सुनो मेरी श्रद्धा ! तेरा मनु फिर एकाकी हो बैठा है  तड़प,उदासी,पीड़ाओं की जीवित झांकी हो बैठा है  फिर जीवन-रस-स्रोत खोल दो  फिर मरुथल कर दो संगम । - Shivam Saagar

निखिल की डायरी

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#समीक्षित 🌷 मुझे कुछ बुनियादी चीज़ों की जानकारी भी तब ठीक से नहीं थी। मुझे नहीं पता था कि .... क्या कितना सही है और क्या कितना ग़लत? मुझे नहीं पता था कि भविष्य और वर्तमान में से किसे चुनना चाहिए ... और मैंने बिना ज़्यादा सोचे - समझे वर्तमान चुन लिया। सब कुछ जैसा था , वैसा बना रहा कुछ दिन..... और फिर अचानक एक दिन मुझे पता चलता है कि उस शख़्स ने भविष्य चुन लिया जिसके लिए मैंने अपने अतीत में अपना वर्तमान चुना था।  मुझे नहीं पता कि मैं कौन से काल में जी रहा हूं । यह मेरे अतीत का भविष्य हो सकता है या मेरे भविष्य का अतीत। वर्तमान जिसे मैंने चुना था __  मुझे लगता है कि वास्तव में उसकी कोई यथार्थ सत्ता है ही नहीं।  मेरे  इर्द-गिर्द सब कुछ  खुद ब खुद  हो रहा है ।  क्यों हो रहा है .....नहीं मालूम । शायद इसलिए क्योंकि उसे होना ही है । मुझे तैरना नहीं आता और मुझे तेज़ बहती नदी में गिरा दिया गया। मैं दूर तक बहे जाने के लिए अभिशप्त हूं । बह रहा हूं क्योंकि तैर नहीं सकता... अपने हिसाब से ; फिर  अगर तैरना आता भी हो तो इस तेज़ बहाव में तैरना आसान नहीं  और म...