मुबारक नाज़िया दीदी

#समीक्षित ग़ज़ालों सी फुदकती लड़कियों की नस्ल में अव्वल तुम्हारा नाम ही आता उभरकर ज़हन में मेरे , मै तुमको जानता हूँ पिछले पूरे सात सालों से अगर चाहो तो दो महीने छब्बीस दिन और भी लिख लो , भला इस बात की कैसे खुशी ज़ाहिर करे ये दिल कि तुमको जान पाया मैं कि तुमको मान पाया मैं । हंसी तेरी बड़ी अल्हड़ बिखर जाती है औ' कर देती है बेआब फूलों को सभी गुलशन ख़फ़ा तुमसे लिए अपनी शिकायत फिर रहे हैं __ पूछते हैं कौन सी शै है जो रहती है तेरे रुख में भला किसको पता? मगर इस ख़ल्क का माली खुदाया ! जानता है कि वो शै पाकीज़गी ही है वो शै संजीदगी ही है वो शै बस साफ़गोई है। कई मसले मुसलसल दौड़ते हैं बस तेरी जानिब ... कई मुद्दों के पीछे दौड़ना तुमको भी होता है , कई एक मामलों से हद परेशां हो चुकी हो तुम ... कभी खुद से कभी सबसे कभी रब से लड़ी हो तुम। मैं छोटा हूं अगर माफ़ी मिले तो कुछ नसीहत दूं कभी बेसब्र ना होन...