गीत।
जिस रिश्ते को प्रीति के जैसा नाम मिला था दुनिया से
किसे पता की उस रिश्ते में तुम भी थीं या केवल हम ?
प्रेमी मन,व्याकुल तन की अकुलाहट से उकता आया है
नयन दूत वाचाल , तेरे निष्ठुर मन से कहता आया है
आन मिलो ओ प्रियतम मेरे
_आन मिलो मेरे प्रियतम ।
बादल के गुच्छों को संबोधित कर गीत सुना देता हूं
पंछी अगर ठहरकर कुछ पूछे, उसको बदला देता हूं
हां! हां ! ठीक तुम्हारे जैसी
है उस बोली की सरगम ।
सुनो मेरी श्रद्धा ! तेरा मनु फिर एकाकी हो बैठा है
तड़प,उदासी,पीड़ाओं की जीवित झांकी हो बैठा है
फिर जीवन-रस-स्रोत खोल दो
फिर मरुथल कर दो संगम ।
- Shivam Saagar
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