Posts

तानसेन के पास होना...

Image
बारिश रुक-रुककर हो रही थी। मौसम सुहाना था। हवाओं में चम्पा और बेला के फूलों की खुश्बू घुली हुई थी और मियाँ तानसेन न जाने किस राग की कौन सी बंदिश के ख़्वाबों में खोये सो रहे थे... उनके चबूतरे का बायाँ हिस्सा चमेली के पेड़ से झर रही फूलों की पत्तियों से भरा हुआ था और दाहिने में इमली का दरख़्त खड़ा था।  बारिश हो रही थी। मियाँ सो रहे थे। बारिश हुई जा रही थी। वो सोये जा रहे थे। शायद राग मेघ गाकर ही सोये होंगे।  तन तो वहाँ से उठ आया पर मन का एक हिस्सा अभी भी यही बैठा है। प्रतीक्षा में। कि कभी तो उठेंगे। कभी तो ये नींद टूटेगी। कभी तो तान छिड़ेगी - घन गरजत बरसत बूँद-बूँद। इस जनम न सही तो अगले जनम। कहीं न कहीं तो टकराएंगे ही हम। ज़िंदगी में न सही तो जन्नत में सही।

कबीर अगर आज होते तो...

Image
कबीर आज होते तो क्या होता... ?? बहुत अधिक सम्मान तो उनके समय ने भी उन्हे नहीं दिया पर आज होते तो उनके एक-एक दोहे की ट्रोलिंग की जाती, उनके खिलाफ दर्जनों-सैकड़ों एफआईआर फाइल होतीं। प्रिंट मीडिया उनकी बातों को भड़काऊ बताता और न्यूज चैनल्स उनके सीने पर टुकड़े-टुकड़े गैंग का तमगा चिपका देते। धर्म और समाज को बचाने वाले स्वघोषित नेताओं की भीड़ हाय-हाय करती निकलती और चौराहों में उनके पुतले फूंके जाते।  वो कहते कि - ' पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़'  तो कई कथित सनातनी दल उनके घर का घेराव करते, उनको अरब एजेंट डिक्लेयर करते और पाकिस्तान भेजने की घोषणाएँ करते। वो कहते ' जौ तू तुरक तुरकनी जाया। तौ भीतर खतना क्यों न कराया।'  तो उनके सर कलम के फतवे जारी हो जाते। वो कहते 'काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम'  इतने में हिन्दू-मुस्लिम समवेत स्वर में उन्हे गरियाते। उन तानों-फब्तियों-गालियों से कबीर और चार्ज ही होते ' हिंदू मूये राम कहि, मुसलमान खुदाई/ कहै कबीर सो जीवता , दुई मैं कदे न जाई '। हिन्दू-मुस्लिम सब उनके विरोधी होते, भाजपा-कांग्रेस से लेकर एआईएमआईएम और ...

आठवी जी के लड़के

Image
ये बच्चे जिन जगहों से आते हैं वहाँ बहुतों की ज़िंदगी 10 ×10 के कमरे में बीत जाती है, वहाँ लोगों को नहीं पता कि सिविक सेंस किस चिड़िया का नाम है, सरकारें जिन जगहों को अपने वोटबैंक के तौर पर यूज़ करती है और फिर भूल जाती हैं। इन जगहों से निकलने वाले इन बच्चों से रफ़्तार- गुफ़्तार- नशिश्त- बरख़ास्त की उम्मीद लगाना बेमानी है, अदबी रवैये की तवक़्क़ो बेकार है। इनमें से एक घर पहुंच कर सीधा दादा की दुकान पर जाएगा, और दूसरा ब्रा सिलने के लिए मशीन पर बैठ जाएगा। तीसरा जेल में बंद अपने वालिद से मिलाई पर जाएगा और चौथा घर का सिलेंडर भरवाने। पाँचवा सिले हुए कुर्ते सिर पर उठा दुकान मे देने जाएगा और छठवा साइकिल पे कुछ सामान लटका कर फेरी लगाएगा। नैतिकता-सभ्यता-सामाजिकता जैसे शब्दों को बारहाँ कुचलते हुए ये अपने और अपने परिवार के लिए कमाते ये लड़के पूरे मुस्तफ़ाबाद में घूमते है और इस पूरे इलाके को अपनी जागीर समझते हैं। इन लड़को को भूगोल दिल्ली का भी नहीं पता पर भौकाल इतना जैसे कि कनाडा को जेब में लेकर घूम रहे हो। अव्यवस्थित व्यवस्थाओं की मार के सताए हुए क्षेत्र के ये असंतुलित बच्चे किसी का सर ...

14 अगस्त

Image
एक देश जिसको लेकर एक दूसरे देश में इतने पूर्वग्रह, इतनी कम समझ है कि आप उसके बारे में बात करने भर से, उसको सुंदर कह देने भर देशद्रोही बन सकते हैं।  एक देश जो एक दूसरे देश से कुछ देर पहले आज़ाद हुआ पर उसके आक़ाओं ने उसे कई-कई बार ऐसे चलाया/खपाया जैसे वो उनके घर की जागीर हो।  एक देश जिसको लेकर एक दूसरे देश का एक वर्ग ये मान कर चलता है कि वहाँ सब बगल वाले देश को, उसके नागरिकों को बद्दुआएं ही दे रहे होंगे; ये मानता है कि वहाँ के लोग बेकार हैं। अजीब ये है कि वही वर्ग ये भी चाहता है कि ये देश उस देश पर आक्रमण कर कब्जा कर ले। मैं सोचता हूँ तब उस देश की जनता को कैसे स्वीकार करेंगे दूसरे देश वाले?  एक देश जिसमें खूबसूरत मौसिक़ी है, एक देश जिसमे खूबसूरत बाग़ीचे हैं, एक देश जिसमे खूबसूरत ईमारतें हैं, एक देश जिसमें अदबी लोग हैं।  एक देश जो एक दूसरे देश का खूबसूरत हमसफर हो सकता था पर दोनों ही देशों के सियासती चोंचलों ने दोनों को एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया।  एक देश जिसके शहर एक दूसरे देश के शहरों के जुड़वा लगते हैं।  एक देश जहाँ बोली जाने वाली ज़बान लगभग एक दूसरे देश के...

एक दिन शाम को ट्रक आकर खड़ा हुआ और अम्मी अब्बू उसमें सामान भरने लगे

Image
........................................................................ कासिफ नाम के इस लड़के को क्लास के सारे बच्चे पंजाबी बुलाते हैं । मैंने कारण पूछा तो पता चला कि ये बच्चा कुछ दिन पहले ही पंजाब से दिल्ली आया है। मैंने पास बुलाया, बिठाया और बात की। बहुत आहिस्ता-आहिस्ता बोलते हुए उसने सब बताया: " पहले ये सब नाम से ही बुलाते थे... एक दिन इन लोगों की पूछा कि मैं कहाँ से आया हूँ तो मैंने बता दिया। इन सबने कहा कि पंजाबी बोल कर दिखाओ। मैंने बोल दी। तब से ये लोग मुझे पंजाबी-पंजाबी ही कहते हैं" Me: " तुमको बुरा लगता होगा" He: " नहीं लगता सर!" Me: "अच्छा पंजाब में कहाँ रहते थे...?" He: "वहाँ पर गली नम्बर नहीं था सर..." Me:"....मेरा मतलब शहर ?" He: " वो नहीं पता सर...पर वहाँ पर बड़ा सा घर था" Me: "अच्छा यहाँ पर कहाँ रहते हो?" He: "16 नम्बर गली में" Me: " यहाँ नये दोस्त बने?" He: " अभी तो नहीं पर वहाँ मेरे बहुत दोस्त थे। अरमान , जीशान, अल्तमस, शिवा,गुरमीत सबके साथ मैं खूब खेलता था। वहाँ तो...

तारीकी

Image
चौदस की ये रात अँधेरी  हौले से  अपनी स्याही में उसके मन को डुबा रही है उसका जीवन डुबा रही है आसमान से गुम है चंदा।    वो बेसुध-बेहोश ज़रा-सा नींद में है और होश ज़रा-सा बालकनी पे लटके  दुनिया देख रहा है।  बेसुध इतना है कि नीचे गिर सकता है इक मामूली धक्के से वो मर सकता है होश में इतना है कि ये सब सोच-समझ लेन के बाद भी वहीं खड़ा है. . . जबकि इस सुनसान रात में ये अपनी माशूकाओं को ख़त लिख सकता है, बना के दो कप कॉफी  अपने हैंगओवर से लड़ सकता है, पन्ने अपनी डायरियों के  नीले रंग से भर सकता है, बढ़ी हुई दाढ़ी ट्रिम कर के थोड़ा-बहुत संवर सकता है, अपने जीवन की तारीकी दोनों हाथ लुटा सकता है, भूले-बिसरे यारों को  खुद अपनी तरफ से फोन मिलाकर  सब शुबहात मिटा सकता है... काश... काश वो थोड़ा और होश में आ जाए काश वो इन सारे कामों को निपटाए या फिर उस पर  और बेहोशी तारी हो भूल जाए सब, इस हद तक सिर भारी हो   भूल जाए ये बात कि वो अगले पल कुछ भी कर सकता है वो सोना ही चुन ले जबकि वो अगले पल मर सकता है सोने से ये रात मेहरबाँ हो जाएगी  सोने से सब प...

आज़ादी!!!

Image
#समीक्षित ❤️ पच्चीस बरसों में पहली बार पन्द्रह अगस्त वाले दिन सफर किया. . . घर से कानपुर आया। रास्ते में बीसियों रैलियाँ मिली, तिरंगा लहराते सैकड़ों लोग दिखे। छतों पर हवा से बतकही में लगे हजारों ध्वजों को देखकर मन बारम्बार रोमांचित होता रहा।  घर से निकलने की जल्दी में पानी की बोतल रखना भूल गया। रास्ते में पानी साथ न होना कई बार परेशानी का सबब बन जाता है क्योंकि प्यास लगने पर मन पैक्ड वॉटर लेने और नहीं लेने के द्वंद्व में पड़ जाता है। बीस रुपये की बोतल लेना कई बार  फिजूल लगता है। अब अक्सर मैं पानी के बजाय छाछ, लस्सी या दूध ले लेता हूँ। पहले कोल्ड ड्रिंक ले लिया करता था पर इधर कुछ दिनों से उसको भी कम किया है। कानपुर तक आते-आते रास्ते में कई जगह बारिश मिली। रुई के फाहों से बादल हवा के साथ-साथ गिरते-पड़ते-उड़ते भागे जा रहे थे जैसे बूँदी बंटने के बाद प्राइमरी स्कूलों के बच्चे भागते हैं। ये छुट्टी होते ही घर की ओर भागने का सुख भी केवल प्राइमरी और उसके जैसे सीमित पहुंच वाले स्कूल के बच्चों को ही नसीब है वरना बढ़ते कॉन्वेंटीकरण में बच्चे या तो स्कूल बस में सवार हो जाते है या फिर खड़े ...