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Showing posts from April, 2019

वो चली गई !

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वो चली गई ! एक कवि द्वारा ''जाना हिंदी की सबसे खतरनाक क्रिया'' घोषित कर देने के बावजूद वो चली गई । उसने शायद कभी भी उस कवि को नहीं पढ़ा  , उसने शायद कभी साहित्य ही नहीं पढ़ा ; उसने नहीं पढ़ी थी वो कविताएं भी.. जो बराबर लिखी जाती रही थी उसके लिए , उसी को शब्दों में समेट कर  । उन सभी कविताओं को यहीं मेरे पास छोड़कर कर ......अंततः वो चली गई । मैं सोचता हूं कि अब कविताएं नहीं लिखूंगा कुछेक दिन और इस दौरान इकट्ठा कर लूंगा उसकी तस्वीरें और फिर मैं उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीरों का एक कोलाज बनाऊंगा.... बहुत बड़ा सा... जिसके नीचे लिख लूंगा वही लाइन जो एक बार रोमांचित कर देने के बाद हर बार सामान्य सी लगी थी उनको - ''कहो प्रेयसी कैसी हो ? '' हालांकि तस्वीरें उत्तर नहीं देंगी पर तसल्ली तो देगी ही , कम से कम सुन तो सकेंगी ही मेरे गीतों - ग़ज़ल दीवारों की मदद लेकर । उसे ना जाने कब यह भ्रम हुआ कि उसका चले जाना है मेरे जीवन के एक खंड का अंत... इसीलिए खुद को खंडकाव्य  की नायिका मान इसे संपन्न करने की मंशा मन में लिए हुए आखिरकार वो चली गई ।  क्योंकि वह जा चुक...

परिवर्तन ☺

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परिवर्तन निश्चित है । परिवर्तन निरंतर है । परिवर्तन सतत है । एक तरह से परिवर्तन देवता है । सर्वविदित है कि परिवर्तन आता है पर किस दरवाजे से किन चौखटों को लांघ कर..... यह पता नहीं , दरवाजे से आता भी है या कि कूद आता है छज्जों और खिड़कियों से ....ज्ञात नहीं किसी को भी । अतः कह सकते हैं कि परिवर्तन निराकार है । परिवर्तन विश्लेषण है । परिवर्तन निरूपण है ...नवीनता का । परिवर्तन शत्रु है... पुरातनता का । परिवर्तन संहार करता है । परिवर्तन सर्जन के अवसर देता है । इस मायने में परिवर्तन शिव है । परिवर्तन शिव है ... और जहां शिव है शक्ति भी वही है ; क्योंकि परिवर्तन जैसा कल्याणकारी कार्य बिना सबलता के संभव नहीं । अगर कोई पूछे कि ''क्या सारे परिवर्तन सही है ?'' तो मैं कहूंगा कि जब परिवर्तन होने को परिवर्तित नहीं किया जा सकता तो उसे गलत क्यों माना जाए ; हां कुछ परिवर्तन निराशाजनक होते हैं निश्चित रूप से.. परंतु इसमें भी (जहां तक मेरा मानना है) कारण यह है कि मनुष्य का मस्तिष्क स्थायित्व अधिक पसंद करता है । वह सालों साल... असीमित काल तक जो जहां जैसा है उसे वहां वैसा ही ...

एक गुस्ताख़ ग़ज़ल ।

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एक गुस्ताख़ ग़ज़ल । बार - बार जो  करे दिल्लगी, उससे जिगर लगाना  मत । नदी की धार बहायेगी  पर तुम थमना  बह जाना  मत । मन की  मर्ज़ी  चलने  देना  उसको  कभी  दबाना  मत । पर खुद पर भी हो साबित खुद ही उससे दब जाना मत । यही  तो  मेरे  सातो  दिन - बारहो  महीनों  का  साथी मेरे तन्हापन  को  भूले से भी  कुछ कह  जाना  मत । दौड़  रहा  है  संग  मे पर वो  रक़ीब  हमसफ़र  नहीं उससे बचकर रहना , मंज़िल का रस्ता बतलाना मत । शिवम् सागर ।।

मुझको अपना प्यार बना लो

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मुझको अपना प्यार बना लो । खूब  संवरने  सजने  वाली नित नित रूप बदलने वाली सरगम सुनकर जगने वाली पारिजात सी खिलने  वाली                    मेरे अंगने में आकर के                    तुम कोई त्यौहार मना लो । मुझको अपना प्यार बना लो । सूरज होकर  छिपने वाली बनकर चांद चमकने वाली नॉवल लेकर चलने  वाली पन्ने महज  पलटने  वाली                     खुद को थोड़ा खर्च करो और                     तुम मुझ पर अधिकार कमा लो । मुझको अपना प्यार बना लो । शिवम् सागर ।