वो चली गई !

वो चली गई ! एक कवि द्वारा ''जाना हिंदी की सबसे खतरनाक क्रिया'' घोषित कर देने के बावजूद वो चली गई । उसने शायद कभी भी उस कवि को नहीं पढ़ा , उसने शायद कभी साहित्य ही नहीं पढ़ा ; उसने नहीं पढ़ी थी वो कविताएं भी.. जो बराबर लिखी जाती रही थी उसके लिए , उसी को शब्दों में समेट कर । उन सभी कविताओं को यहीं मेरे पास छोड़कर कर ......अंततः वो चली गई । मैं सोचता हूं कि अब कविताएं नहीं लिखूंगा कुछेक दिन और इस दौरान इकट्ठा कर लूंगा उसकी तस्वीरें और फिर मैं उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीरों का एक कोलाज बनाऊंगा.... बहुत बड़ा सा... जिसके नीचे लिख लूंगा वही लाइन जो एक बार रोमांचित कर देने के बाद हर बार सामान्य सी लगी थी उनको - ''कहो प्रेयसी कैसी हो ? '' हालांकि तस्वीरें उत्तर नहीं देंगी पर तसल्ली तो देगी ही , कम से कम सुन तो सकेंगी ही मेरे गीतों - ग़ज़ल दीवारों की मदद लेकर । उसे ना जाने कब यह भ्रम हुआ कि उसका चले जाना है मेरे जीवन के एक खंड का अंत... इसीलिए खुद को खंडकाव्य की नायिका मान इसे संपन्न करने की मंशा मन में लिए हुए आखिरकार वो चली गई । क्योंकि वह जा चुक...