गुजर रहा हूं .....कानपुर के ऊपर से , और कानपुर गुजर रहा है मेरे ऊपर से.....,दोनो रौंद रहे हैं एक दूसरे के सीने को । मै अफसोस भरी निगाहों से देख रहा हूं .......शहर को ,इस शहर को जो अभी भी जी रहा है तुम्हारे बगैर जबकि इसे थम जाना चाहिए था , इसे रुक जाना चाहिए था , इसको इतने हुकूक किसने दिये जो ये जी रहा है लगातार हर घंटे हर दिन, बढ़ रहा है बन रहा है भर रहा है नये नये लोगो से हर गुजरते पल के साथ । .......तो क्या ये शहर तुम्हे भूल गया , एक कवि की उद्घोषणा के बाद भी कि "रिशतों मे नया कभी/पुराने का विकल्प नही हो सकता " , इस शहर ने तुम्हे भुला दिया, यहॉ तक कि तुम्हारे वाकये को ज़हन से मिटा दिया । जैसे तुम यहॉ थी ही नहीं , जैसे तुम इसकी थी ही नहीं , जैसे कि तुमने यहॉ ज़िंदगी जी ही न हो , जैसे कि इस शहर से कोई राब्ता न रहा हो कभी भी.....। देखो इस शहर के लिए तुम छोड़ आई थी सब और इसने तुम्हे ही भुलाकर तुम्हे बेहतरीन सिला दिया है । तुम भले ही अपना समझती हो अभी भी इसे पर यकीं करो इसने भुला दिया सबकुछ .... तुम्हारा अक्स ,तुम्हारा नाम, तुम्हारा गीत, तुम्हारे दिलकश नग्में .....