वैलेंटाइन ❤🌷😑

#समीक्षित 🌷

रिजेक्शन उतना भी बुरा नहीं लगता अगर रीजन पता हो ।

रुख़सार ने एकदम  साफ़ तरीके से अनिमेष से मना कर दिया था कि ''अब्बा मान ही नहीं सकते । तुम मुस्लिम नहीं हो न । ''  अनिमेष ने पहली बार सच की कड़वाहट को इस तरह महसूस किया । ये दोनो जोया और परम की तरह हिम्मत नहीं दिखा पाए । दिखा भी नहीं सकते । इनकी ज़िंदगी में कोई चाँद बीबी भी नहीं थी जो मददगार साबित होती । मगर इस सबके बावजूद अनिमेष को सुकूं था इस बात का की रुख़सार को उससे मुहब्बत थी (और शायद है भी )। 

माधव अब अनिमेष को भी मुहब्बत के मामले में नसीब वाला समझता है कि उसके पास कम से कम इश्क़ के एहसासात तो हैं । संवेदना से दूर होने के बाद से उसको अपने सिवा हर शै खुशनुमा और शख़्स खुशहाल नज़र आता है । एक लम्बे अरसे से उसकी रातें यही  सोचते-सोचते गुज़रती हैं कि क्या वास्तव मे उसके और संवेदना के बीच कोई इतनी ख़ामोशी से आ गया कि उसको पता तक न चला । 

काश संवेदना मे भी रुख़सार जितनी साफ़गोई होती ! काश वो भी माधव को कोई वज़ह दे जाती तो माधव इस कदर परेशान न होता !!

13 तारीख की शाम है ,  फ़रवरी आधी बीत गई है लगभग और रात के दस बजे माधव उन तमाम ख़तों और तोहफ़ों को फैलाए बैठा है जो पिछले कई सालों की 14 फरवरी के गवाह है । माधव को पता है इस बार इनमे कोई इज़ाफ़ा नहीं होगा । 

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते , यही इंतज़ार होता । 

कहूँ किससे कि ये क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना , अगर एक बार होता । 

- ग़ालिब ❤😑

- SHIVAM SAAGAR 

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