मतलब पूरा दिन निकल जाता है और आप उपलब्धि के स्तर पर लगभग 1 शब्द भी नहीं पा पाते..... ऐसा कुछ नहीं होता जो आप के क्षण को भी विलक्षण बना दे ,,विशेष बना दे, भावना, संवेदना आदि के स्तरों पर...
___अचानक से पानी बरसने लगा .......बादल थे कल शाम से, पर अब आज शाम को पिघल रहे हैं | पानी की छोटी-छोटी बूंदें बिछी जा रही है... जमीन हर बूंद के साथ और गीली होती जा रही है | कुछ देर बाद यह जानना ...
उसने क्या-क्या कहा नाराज़गी में हमने कुछ ना सुना नाराज़गी में जब्त था जो जिगर में इक उमर से वही दरिया बहा नाराज़गी में मुझ में लाखों हैं कमियां ये बताया उसने है खत ...
नहीं.... रत्नप्रभा उसका नाम नहीं था.... बस वह ऐसे ही रत्नप्रभा थी । खुले आकाश के तले बैठे हम दोनों ....मैं जब- जब उसे देखता वह पहले से अधिक ही दमक रही होती •••••! मेरी नजर एक नहीं पाती उस प...
जैसे सदियों की प्यास हो इसे .....जैसे होंठ पपड़ा आते हैं वैसे ही पूरी जमीन पपड़ा आई है... और बादल घुमड़ रहे हैं ...गरज रहे हैं उम्मीद और आशाओं के., पर ना जाने क्यों बंधे से हैं बरस नहीं रहे खुलकर ........बौछार से गिरा देते हैं रह-रहकर , दूसरी बूंद गिरने से पहले पहली समा जाती है ......सूख जाती है...... निशान तक मिट जाता है उसका और जमीन ताकती रहती है ........करती है इंतजार मौसम की शुष्कता मंझा कर आ रही अगली बूंद का........ इस जमीन की दास्तां कितनी मिलती है मुझसे.......अरे यह क्या मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं तब्दील हो रही हूं जमीन में और इन बादलों में नजर आ रहे हो तुम .......हां तुम ही ... निष्ठुर कहीं के ।