प्रियतम

___अचानक से पानी बरसने लगा .......बादल थे कल शाम से, पर अब आज शाम को पिघल रहे हैं  | पानी की छोटी-छोटी बूंदें बिछी जा रही है... जमीन हर बूंद के साथ और गीली होती जा रही है  | कुछ देर बाद यह जानना मुश्किल हो जाएगा कि क्या जमीन सूखी भी थी ......., जैसे मैं ही भूल गई हूं कई बातें तुम्हारे आने के बाद......... |
मेरा मन भी इसी जमीन जैसा सूखा था लेकिन आज क्या कोई भाप सकता है मेरे और सूखेपन को....., आज मैं नदी हूं कलकलाती हुई.... और तुम मेरे हिमालय, तुम ही से बनी ,तुम ही से पूरित, आज अगर मैं कुछ पहचान पा रही हूं तो उसका श्रेय  सिर्फ तुम ही को तो है   | 
भले ही तुम मौन हो हिमालय की तरह...... भले ही दूर हो उस बादल की तरह ........लेकिन फिर भी तुम मेरे हो , तुम्हारा पिघलना , तुम्हारा बरसना.... सिर्फ मेरे लिए ही तो है |  क्या इस अपनेपन को मैं प्रेम की श्रेणी में नहीं रख सकती ....... |बताओ ना ..........क्या आज भी चुप रहोगे .........???

शिवम सागर समीक्षित
95573 01043

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