इक गुस्ताख ग़ज़ल
उसने क्या-क्या कहा नाराज़गी में
हमने कुछ ना सुना नाराज़गी में
जब्त था जो जिगर में इक उमर से
वही दरिया बहा नाराज़गी में
मुझ में लाखों हैं कमियां ये बताया
उसने है खत लिखा नाराज़गी में
इधर हमने लिखी हैं खूब गजलें
वक्त हमको मिला नाराज़गी में
भिगोए स्याहियों से कोरे पन्ने
हम ने क्या क्या लिखा नाराज़गी में
वो पागल है जो माशूक को मनाए
मियां ! ज़्यादा मज़ा नाराजगी में |
...........................शिवम् समीक्षित |
बहुत खूब सागर मियाँ ...
ReplyDeleteशुक्रिया
Delete😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂👌👍
DeleteHmm