समीक्षित 1

मैं चांदनी से  दिल का  हाल बयां करता हूं
बस एक उसको अपना राजदां समझता हूं

तू दिन में जो कहानी मुझसे छिपके पढ़ता है
मैं रात में  उसी को  और आगे  लिखता  हूं |

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