Posts

Showing posts from 2020

मैं शहर छोड़ना चाहता हूँ

Image
'' मैं चाहता हूं कि ये शहर छोड़ दूं ''- माधव ने कहा और मैंने अनसुना करने की कोशिश की । '' तुम्हारा क्या ख्याल है ?''- वह जवाब चाहता था ।  '' किस बारे में ? ''-  मैंने उसे सवाल को बदलने का एक मौका सा दिया । '' मैं शहर छोड़ना चाहता हूं ''- माधव ने सवाल नहीं बदला । '' कहां जाओगे फिर ?''- सवाल वाजिब था । माधव की ख़ामोशी ने उसकी तरफ से जवाब दिया । मैंने कहना जारी रखा - ''शहर बदलना_ व्हाट्सएप की डीपी बदलने जैसा नहीं है ,,, कि मूड ऑफ हुआ और ब्लैक कर दी । तुम शहर छोड़ दोगे पर क्या ये शहर तुम को छोड़ देगा ? बी लॉजिकल ।''  '' भक् साला लॉजिक ! हमको लॉजिक समझा रहे हो ? लॉजिक समझाना है तो उसे समझाओ ! पूछो जाकर उससे कि मेरे साथ रात मे चौराहों में टहलने का क्या लॉजिक था ? कैफ़े में एक कॉफ़ी  के सहारे दो लोगों के बैठे रहने का क्या लॉजिक था ? रात के पौने दो बजे वीडियो कॉल में - ''गिटार सुनना है'' कह देना कौन सा लॉजिक है ? बताना भाई ! बता मुझे ! उसने गिटार की धुन सुनी और मैंने घर वालो...

प्रेमचंद : पराधीन भारत के स्वाधीन लेखक

Image
#जन्मतिथि अब से क़रीब 140 साल पहले  बनारस के छोटे से गांव लमही के रहने वाले डाक मुंशी अजायब लाल के यहां एक लड़का पैदा होता है,  जिसका नाम धनपत राय रखा जाता है । उसी धनपत राय को आज दुनिया #प्रेमचंद के नाम से जानती है प्रेमचंद्र हिंदी कथा साहित्य के अटल ध्रुव ,प्रकाशित सूर्य और प्रवाहित गंगा के समान हैं _ जो प्रतिदिन - प्रतिपल - प्रतिक्षण नवीन है. . . और प्रासंगिक भी । प्रेमचंद हिंदी के पहले #प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते हैं क्योंकि उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उसी सम्मेलन में दिया भाषण प्रगतिशील आंदोलन के घोषणापत्र का आधार बना था । परिवार में उर्दू पढ़ने की परंपरा होने के कारण प्रेमचंद ने उर्दू की शिक्षा प्राप्त की । प्रेमचंद हिंदी में भी उर्दू से ही आए थे । हिंदी में उनकी प्रथम कहानी को लेकर सामान्यतः  'पंच परमेश्वर'  का नाम लिया जाता रहा है ।किंतु नये शोध बताते हैं कि 'पंच परमेश्वर' का प्रकाशन सरस्वती जून 1916 के अंक में हुआ था जबकि इससे पहले उनकी कहानी ' सौत'  का प्रकाशन दिसंबर 1915 वाले अंक में हो चुका था । यह कहानी आश्चर्यजनक...

उसे किताबों का बड़ा शौक था ।

Image
#समीक्षित #माधव_और_संवेदना उसे किताबों का बड़ा शौक था । ढेर सारी किताबों को इकट्ठा किया करती. . . उसके घर की सारी अलमारियों उसके इस शौक का सबूत थी । वह हर समय कुछ ना कुछ पढ़ती रहती थी . . .किताब दर किताब। वो कहती थी _ '' किसी किताब को पढ़ने के लिए एक दिन, समझने के लिए एक हफ्ता और जिंदगी में उतारने के लिए एक उम्र चाहिए होती है।''   उसने दुनिया भर का न जाने कितना लिटरेचर पढ़ा था _ मोपासां, गुस्ताव, टॉलस्टॉय ,चेखव, टैगोर मंटो ,रोबेर्तो_ और भी न जाने कितने नाम लिया करती थी वो . . . उन सबको पढ़ती थी वो और मैं उससे उन सब के किस्से सुनता था ।  शाम को बात करते करते धीरे-धीरे पता चलने लगता कि उसने आज क्या पढा ।  एक रात उसने मुझे मोपासां की कहानी सुनाई-  कहानी अच्छी लगी मुझे भी , पर उसका कहना था कि ये एक लव स्टोरी है और मुझे उस में कहीं भी लव एलिमेंट्स नहीं दिखे । उसने फिर से कहा कि ये एक लव स्टोरी है -  मैरिड-लाइफ की लव स्टोरी ।  इस बात ने मुझे खामोश कर दिया । मैरिड- लाइफ वाली बातें मुझे न तब समझ आती थी ना अब आती हैं ठीक लिटरेचर की तरह।  मुझे लगता है कि शादी क...

जिंदगी अगर मौका दे तो सोनू सूद बनना ।

Image
स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंगों में उनकी एक जापान यात्रा का वर्णन आता है , जिसमें वे जापान के किसी स्टेशन पर अच्छे फल ना मिलने की बात कहते हैं और उनकी यह बात एक जापानी नौजवान सुन लेता है । वह फौरन टोकरी भर फल उन तक पहुंचाता है । कीमत पूछने पर केवल यही कहता है कि - 'भारत में किसी से यह मत कहिएगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते । ' राष्ट्रप्रेम और निस्वार्थ कर्म इन भावों से परे आखिर और क्या है ।   1986 में आई फिल्म 'अंकुश' में एक गीत है-  'इतनी शक्ति हमें देना दाता' उसी में पंक्तियां आती हैं -     हम ना सोचें हमें क्या मिला है       हम ये सोचें किया क्या है अर्पण  और केवल इतना ही सत्य काफी है जीवन को संतुलित और संयमित बनाए रखने के लिए।  देश किसी जड़ स्थिति का नाम नहीं है। यह गतिमय भाव है जो हर एक व्यक्ति की गति से प्रभावित होता है । तिरंगे में मौजूद गतिशील चक्र उसकी परिवर्तन की निरंतरता का प्रमाण है।  वह प्रतिपल परिवर्धित होती सत्ता है।  यह सत्ता अपनी जीवंतता हमसे ही ग्रहण करती है और जीवंतता आशाओं और उम्मीदों...

असुविधा के लिए खेद है ।

Image
''कौन सी दुनिया में रहते हो तुम ? कितना कुछ झेला है हिंदुस्तान ने इन लोगों की वजह से...आज तुम जैसे कुछ लोग कुछ समझते ही नहीं ।''.......  '' राजपूतों और मराठों के इतिहास को मिटा रहे हैं तुम जैसे लोग ।''.....    ''क्या हो गया है सभी हिंदुओं को '' .......  ''पाकिस्तान शिफ्ट हो जाना चाहिए '' ...... आदि आदि । ईद मुबारक़ के स्टेटस लगाने से पहले ही मुझे पता था कि हर बार की तरह इस बार भी कई जगह से तीखी प्रतिक्रिया आएंगी।  अब जो भी हो मैं ऐसा ही हूं । और वास्तव में ही . . .मैं ना जाने कौन सी दुनिया में रहता हूं . . . जो मेरे आस- पास आने वाले और धीरे-धीरे मेरे खास बन जाने वाले अधिकांशतः लोग अपनी जाति- धर्म की उन 'सो कॉल्ड' छवियों से दूर,  बहुत दूर होते हैं जिन छवियों के कारण उन्हें प्रशंसित  या दमित किया जाता रहा है।   मैं ऐसे मुस्लिमों को जानता हूं जिन्होंने अपने कमरे में राधा कृष्ण की मूर्ति रखी हुई है,  जिन्होंने अपने आँगन में तुलसी का पौधा लगाया हुआ है । ऐसे ब्राह्मणों को जानता हूं जो उर्दू से लेकर नमाज़ पढ़ने तक के तौर ...

. . . . मज़दूर आ रहे हैं

Image
मज़दूर आ रहे हैं ।  वे आ रहे हैं क्योंकि शासन प्रशासन उन तक नहीं जा पाया । वे आ रहे हैं क्योंकि वो शहर उनको रोकने की शक्ति नहीं जुटा पाए जिनको बसाने में उनके कंधों ने बोझ उठाया था , जिस को बसाए रखने में उनके जिस्म दोहरा गए थे । बच्चों को छोड़कर घर-घर काम करने वाली हज़ारों-हज़ार महिलाएं  आज अपने बच्चों को लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर रही  है । जिन घरों में सुबह-शाम की जीवन शैली उन पर निर्भर हुआ करते थी, उनमें से कोई भी घर इनको रोक पाने में सक्षम नहीं हो पाया । मेरा एक दोस्त दिल्ली के आकर्षण से खिंच कर वहां गया था, कई साल वहां रहने के बाद घटनाक्रम कुछ यूं बना कि वापस उसे यही लौटना पड़ा । आज वह सामान्य बातचीत में भी कह देता है कि ''दिल्ली किसी की नहीं हो सकती''। असल में शहरीकरण ने आंखों में चकाचौंध तो खूब भरी पर गरीब का पेट भरने में वो काफ़ी सफल नहीं हो सका । संविधान से जीवन और आजीविका की गारंटी मिलने भर से जीवन और आजीविका का मिलना और उसका बना रहना सुनिश्चित नहीं होता । मोबाइल जर्नलिज्म के इस दौर में उन मज़दूरों की पीड़ा , उनके दर्द को बयां करते ना जाने कि...

यूट्यूब वर्सेज टिकटॉक के बहाने स्त्री, किन्नर और समलैंगिक अस्मिता पर बात ।

Image
चेतावनी - यहां मैं ना तो यूट्यूब पर बात कर रहा हूं और ना टिक-टॉक पर । मैं केवल और केवल  समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की बात कर रहा हूं,,, जिन पर व्यंग्य तो बहुत होते है , पर बात नहीं होती ।  जब एक यूट्यूबर द्वारा यह कहा जाता है कि- ''  इनका स्टेमिना ही 15 सैकेंड का है  '' तब आप सभी को पता होता है कि वहां किस तरह के स्टेमिना की बात हो रही है । हम एक समाज के तौर पर शायद ही कभी इतने विकसित हो पाए कि किसी का विरोध करने के लिए,  अपनी विरोधी प्रतिक्रिया को दर्ज कराने के लिए हम उसके (या अपने )  धर्म, जाति, रंग ,क्षेत्र ,लिंग ,सेक्सुअलिटी ,बॉडी शेप  आदि को बीच में ना लाएं  टिक टॉक के कंटेंट को लेकर कई तरह के सवाल 'यूट्यूब वर्सेस टिक-टॉक' की चर्चा उठने से पहले ही उठने लगे थे । इस सो कॉल्ड ट्रेंड के आने से पहले ही अपने कंटेंट के कारण टिक-टॉक की आलोचना होती ही रही है । हालांकि आलोचना तो पब-जी की भी हुई । उसको एक नशे की तरह देखा गया , पर एक समय के बाद लड़ाई दंगो वाला यह खेल लड़कों का मनपसंद बन गया।  पब-जी खेलने वालों को 'विनर विनर चिकन डिनर' मिला और...

मुबारक नाज़िया दीदी

Image
#समीक्षित ग़ज़ालों सी फुदकती  लड़कियों की नस्ल में  अव्वल  तुम्हारा नाम ही आता  उभरकर ज़हन में मेरे , मै तुमको जानता हूँ  पिछले पूरे सात सालों से अगर चाहो तो  दो महीने छब्बीस दिन और भी लिख लो ,  भला इस बात की  कैसे खुशी ज़ाहिर करे ये दिल  कि तुमको जान पाया मैं  कि तुमको मान पाया मैं । हंसी तेरी बड़ी अल्हड़  बिखर जाती है औ' कर देती है  बेआब फूलों को  सभी गुलशन ख़फ़ा तुमसे  लिए अपनी शिकायत  फिर रहे हैं __ पूछते हैं कौन सी शै  है  जो रहती है तेरे रुख में भला किसको पता?  मगर इस ख़ल्क का माली  खुदाया ! जानता है कि  वो शै पाकीज़गी  ही है  वो शै संजीदगी ही है  वो शै बस साफ़गोई है।  कई मसले  मुसलसल दौड़ते हैं बस तेरी जानिब ... कई मुद्दों के पीछे  दौड़ना तुमको भी होता है ,  कई एक मामलों से  हद परेशां हो चुकी हो तुम ... कभी खुद से  कभी सबसे  कभी रब से लड़ी हो तुम।  मैं छोटा हूं  अगर माफ़ी मिले  तो कुछ नसीहत दूं  कभी बेसब्र ना होन...

किताबों की बात

Image
#समीक्षित_विचार आज एक मित्र (Devanshu Singh ) ने प्रश्न किया कि मेरी किताबें मुझसे क्या कहती है....क्या बातें करती हैं ?.....अब इस प्रश्न का कोई सहज उत्तर नहीं है मेरे पास...सो माफ करना उत्तर किंचित दीर्घात्मक होने की सम्भावना है | मॉ_बताती_हैं कि मै ढाई बरस का था जब अक्षर मिलाकर पढ़ना सीख गया था....इस आधार पर यह माना जा सकता है कि किताबों से बतियाने का सिलसिला करीब 19 बरस से चल रहा है....अनगिनत किताबों से बातें हुई इन 19 बरसों में ,प्रमाणिक रूप से संख्या तो बताना संभव ही नहीं | हॉ अगर पिछले कुछ वर्षों की बात की जाये तो कह सकता हूँ कि पिछले छः वर्षों मे करीब 50 कविता संग्रहों और इतने ही उपन्यासों और कहानी संग्रहों के इतर विधाओं की करीब 200 किताबों से बाते हुईं | और करीब 150 पुस्तके अभी वरीयता की ऊपरी दो सीढ़ियों पर शेष भी है | दिनकर जी कहते थे कि "लेखक जीवन भर एक ही किताब लिखता है"......दूधनाथ जी मानते है कि " विभिन्न पात्रों के सभी विचार लेखक के ही होते है...वह उसके व्यक्तित्व का ही खण्ड - खण्ड रूप है "  यदि थोड़ी सी छूट मिले तो #मै_कहूंगा_कि  पाठक भी ए...

गीत।

Image
जिस रिश्ते को प्रीति के जैसा नाम मिला था दुनिया से  किसे पता की उस रिश्ते में तुम भी थीं या केवल हम ? प्रेमी मन,व्याकुल तन की अकुलाहट से उकता आया है नयन दूत  वाचाल ,  तेरे निष्ठुर मन  से  कहता  आया है  आन मिलो ओ प्रियतम मेरे  _आन मिलो मेरे प्रियतम । बादल के गुच्छों को संबोधित कर गीत सुना देता हूं  पंछी अगर ठहरकर कुछ पूछे, उसको बदला देता हूं  हां! हां ! ठीक तुम्हारे जैसी  है उस बोली की सरगम । सुनो मेरी श्रद्धा ! तेरा मनु फिर एकाकी हो बैठा है  तड़प,उदासी,पीड़ाओं की जीवित झांकी हो बैठा है  फिर जीवन-रस-स्रोत खोल दो  फिर मरुथल कर दो संगम । - Shivam Saagar

निखिल की डायरी

Image
#समीक्षित 🌷 मुझे कुछ बुनियादी चीज़ों की जानकारी भी तब ठीक से नहीं थी। मुझे नहीं पता था कि .... क्या कितना सही है और क्या कितना ग़लत? मुझे नहीं पता था कि भविष्य और वर्तमान में से किसे चुनना चाहिए ... और मैंने बिना ज़्यादा सोचे - समझे वर्तमान चुन लिया। सब कुछ जैसा था , वैसा बना रहा कुछ दिन..... और फिर अचानक एक दिन मुझे पता चलता है कि उस शख़्स ने भविष्य चुन लिया जिसके लिए मैंने अपने अतीत में अपना वर्तमान चुना था।  मुझे नहीं पता कि मैं कौन से काल में जी रहा हूं । यह मेरे अतीत का भविष्य हो सकता है या मेरे भविष्य का अतीत। वर्तमान जिसे मैंने चुना था __  मुझे लगता है कि वास्तव में उसकी कोई यथार्थ सत्ता है ही नहीं।  मेरे  इर्द-गिर्द सब कुछ  खुद ब खुद  हो रहा है ।  क्यों हो रहा है .....नहीं मालूम । शायद इसलिए क्योंकि उसे होना ही है । मुझे तैरना नहीं आता और मुझे तेज़ बहती नदी में गिरा दिया गया। मैं दूर तक बहे जाने के लिए अभिशप्त हूं । बह रहा हूं क्योंकि तैर नहीं सकता... अपने हिसाब से ; फिर  अगर तैरना आता भी हो तो इस तेज़ बहाव में तैरना आसान नहीं  और म...

ग़ज़ल

मेरी  मोहब्बत  तेरी  अदावत को  जीत  लेगी ये ज़िंदगी  देखना  क़यामत  को  जीत  लेगी ये जिसको तुम कुछ भी ना समझते हो, ख़ैर खाओ ! ये  भीड़ इक दिन तेरी सियासत को जीत लेगी नसीब वालों  ! उठाओ परचम , कदम बढ़ाओ तुम्हारी कोशिश दिलों  की चाहत को जीत लेगी सवाल उठता,  सवाल  उठने  की बात ही  है भला शराफ़त भी कैसे जुल्मत को जीत लेगी हमीं  तुम्हारे  क़रीब  आकर  ठहर  गए   हैं  नहीं  पता था,  तू मेरी वहशत को जीत लेगी

#माधव_और_संवेदना

Image
#समीक्षित #माधव_की_डायरी कुछ लिखने के लिये राइटिंग पैड उठाया जाता है पर लिखा कुछ नहीं जाता। जब आपको भयंकर जुकाम हो _खाँसी हो ... और चारो तरफ सिर्फ #कोरोना की चर्चा ...तब दिमाग़ केवल उसके लक्षणों को खुद में ढूंढता है ,  और कुछ नहीं  । अचानक से जिंदगी छोटी और झूठी लगने लगती है । मौत के बारे में सोच - सोच कर दम तो वैसे ही निकल चुका होता है।  हालांकि ऐसे में भी मैं प्रेम कहानी लिख सकता हूं। पर फिर रुक जाता हूं कि क्या फायदा । क्या कहानी पूरी कर पाऊंगा ? क्या वास्तव में इतने दिन है मेरे पास ? .... या फिर क्या इतने दिन है किसी के भी पास कि वो अपनी कहानी पूरी कर सके ? क्योंकि, कहानी लिखी तो  धीरे-धीरे जाती है पर हमारे सामने  वो मुकम्मल किसी एक दिन अचानक ही हो जाती है। फोन में मैसेज आता है- '' इट्स ओवर नाउ।''  सुबह जिस नंबर पर आप पूरे दिन का शेड्यूल सुना चुके होते हैं शाम से लगातार वह नंबर ''नॉट एक्जिज्ट'' हो जाता है। ....और सब कुछ पूरा हो जाता है काफी कुछ अधूरा छोड़ कर। कहानियां ऐसे ही पूरी होती है #मेरे_दोस्त ! जिंदगी हर एक को कबीर सिंह बनने का मौका नहीं देती ।...

माधव_और_संवेदना

Image
#समीक्षित दुनिया भी एक झटके में खत्म हो जाएगी... बिना कोई दूसरा मौका दिए ।  हमने कहा था एक दूसरे से कि ''शाम को फोन करेंगे।'' ... हालांकि यह कोई वादा नहीं था, पर फिर भी एक भरोसे का प्रतीक तो था ही यह कहना कि 'फोन करेंगे'। __ मतलब हमारे बीच अभी कुछ ऐसा है जिस पर बात की जा सकती है... कुछ ऐसा है जो हमारे नंबर्स को एक दूसरे के कॉल लॉग्स में ऊपर उठा सकता है। पर पहल कैसे की जाए? और होता है इंतजार कि सामने वाला करें कोई शुरुआत.... और कोई फोन नहीं आता। फोन का मौन व्रत लगातार जारी रहता है। 😕 माधव ने एक बार मुझसे इस बात का जिक्र किया था कि इन दिनों संवेदना से बात नहीं हो पा रही है ठीक से। आज भी उसने  '' पापा आ गए हैं'' बोल कर फोन रख दिया।__ इस बात को लगभग 5- 6 महीने बीत चुके हैं और लगातार 'पापा आ गए हैं' , 'मम्मी बुला रही है'  का जो नतीजा निकला वह बताने की जरूरत नहीं।   माधव कितना बेचैन है,,, नहीं बता सकता_ पर शायद इतना बेचैन मैं कभी नहीं हुआ था स्नेहा के लिए  क्योंकि मैं और स्नेहा कभी एक रिश्ता  बना ही नहीं पाए। और वो जो रिश्ते  जैसा बना ...

ये दिन खास सा है।

ये दिन ख़ास सा है  मुकम्मल हुई थी खुदा की बनाई  एक बेहद निराली सी  तस्वीर इस दिन । उसी की खुशी है जो मै जी रहा हूँ  उसी की खुशी है जो  मै पी रहा हूँ ...  उसी की वज़ह से मै ये लिख रहा हूं । उसी की वज़ह से है तरतीब मे सब , ये खुर्शीद- तारे बताओ क्यों जगमग चमकते  सुब्हो शाम ? आखिर क्या मसला है इनका ... ? यक़ीनन  महज़ जल रहे है  जो कर ली है रंजिश उसी से, जिसे अपना महबूब कहने की ख्वाहिश दबाये हुए दिल  हमारा... जिये जा रहा है , किये जा रहा है _ वही काम अपना  बताती है जितना उसे बायोलॉजी । तुम्हे उसकी तस्वीर कैसे दिखाऊं , जिसे देख कर कैमरे हों दिवाने  सभी अपने फंक्शन भुला दें । भुला दें _ लगा टाइमर  सेल्फ़ी लेने की कोशिश  करी हमने जब भी मियां नीप्से ! कैमरा ये हमेशा ही भूला कि क्या काम उसका .... ये ब्लर - फ़्लैश - पोट्रेट  ये टाइमर... ये पल पल के मसले ... नहीं उसको आते ज़रा भी ज़रा भी । यकीं मानो हम  देखते है  उसे  अब भी  बंद करके आंखे । खुली आंखो से झेलना ताब उसका  भला किसको मुमकिन। उसका अंदाज़े...

वैलेंटाइन ❤🌷😑

Image
#समीक्षित 🌷 रिजेक्शन उतना भी बुरा नहीं लगता अगर रीजन पता हो । रुख़सार ने एकदम  साफ़ तरीके से अनिमेष से मना कर दिया था कि ''अब्बा मान ही नहीं सकते । तुम मुस्लिम नहीं हो न । ''  अनिमेष ने पहली बार सच की कड़वाहट को इस तरह महसूस किया । ये दोनो जोया और परम की तरह हिम्मत नहीं दिखा पाए । दिखा भी नहीं सकते । इनकी ज़िंदगी में कोई चाँद बीबी भी नहीं थी जो मददगार साबित होती । मगर इस सबके बावजूद अनिमेष को सुकूं था इस बात का की रुख़सार को उससे मुहब्बत थी (और शायद है भी )।  माधव अब अनिमेष को भी मुहब्बत के मामले में नसीब वाला समझता है कि उसके पास कम से कम इश्क़ के एहसासात तो हैं । संवेदना से दूर होने के बाद से उसको अपने सिवा हर शै खुशनुमा और शख़्स खुशहाल नज़र आता है । एक लम्बे अरसे से उसकी रातें यही  सोचते-सोचते गुज़रती हैं कि क्या वास्तव मे उसके और संवेदना के बीच कोई इतनी ख़ामोशी से आ गया कि उसको पता तक न चला ।  काश संवेदना मे भी रुख़सार जितनी साफ़गोई होती ! काश वो भी माधव को कोई वज़ह दे जाती तो माधव इस कदर परेशान न होता !! 13 तारीख की शाम है ,  फ़रवरी आधी बीत गई है लगभग...

खालीपन

#समीक्षित 🌷 दिन को रेत की तरह हाथों से फिसलते देखना ...हर रात माधव को परेशान करता है।  सबको अपनी ज़िंदगियों में व्यस्त देखकर माधव अच्छा महसूस करता है .... उसके माथे पर बल पढ़ते है...